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22:03, 6 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार='दिग्गज' मुरादाबादी
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<poem>धुनी रुई के गोले जैसा
मनमोहक खरगोश,
चाहे जितना इसे छेड़िए
रहता है खामोश।
मन करता है इसे गोद में
लेकर खूब दुलारें,
अपने अलबम में रखने को
इसका चित्र उतारें।
</poem>