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22:41, 6 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पवन करण
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>गुड्डी गई देखने मेला,
भीड़-भड़क्का ठेलम ठेला!
जोकर-जादू, मोटर झूला,
पाँच रुपए में चक्की-चूल्हा!
दही-पकौड़ी, चाट मलाई,
गुड़िया ले लो, सजी सजाई!
छुक-छुक करती चलती रेल,
नए-नवेले देखो खेल!
चार आने में देखो झाँकी,
सबसे अच्छी गई है आँकी!
शोर-शराबा भीड़ का रेला,
गुड्डी गई देखने मेला!
</poem>