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नई सुबह / देवप्रकाश गुप्त

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<poem>फूलों से तुम हँसी माँग लो, सागर से गहराई,
नए साल की नई सुबह तुमको दुलारने आई।

फुदक-फुदक कर चिड़िया बोलीं,
सुन, झूमी बच्चों की टोली,
सपने में भी कभी किसी की करना नहीं बुराई!

लहरों से बढ़ जाना सीखो,
आँधी से टकराना सीखो,
झुको फलों से लदी डाल-सा, मेरे नन्हें भाई!

कल पर कोई काम न टालो,
हँकर सारे बोझ उठा लो,
बढ़ने वालों की दुनिया में होती सदा बड़ाई!
</poem>
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