भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नई सुबह / देवप्रकाश गुप्त
Kavita Kosh से
फूलों से तुम हँसी माँग लो, सागर से गहराई,
नए साल की नई सुबह तुमको दुलारने आई।
फुदक-फुदक कर चिड़िया बोलीं,
सुन, झूमी बच्चों की टोली,
सपने में भी कभी किसी की करना नहीं बुराई!
लहरों से बढ़ जाना सीखो,
आँधी से टकराना सीखो,
झुको फलों से लदी डाल-सा, मेरे नन्हें भाई!
कल पर कोई काम न टालो,
हँकर सारे बोझ उठा लो,
बढ़ने वालों की दुनिया में होती सदा बड़ाई!