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इतनी बात / कृष्ण शलभ

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<poem>मुन्ना बोला-ओ री अम्माँ,
मेरी गुल्लक में कुछ पैसे,
जिनको मैंने जोड़-जोड़ कर
रख छोड़े हैं, जैसे-तैसे।

इन पैसों से पहले सोचा
जाकर खेल-खिलौने लाऊँ,
फिर यह सोचा, इन पैसों से
डट कर चाट-पकौड़ी खाऊँ।

लेकिन फिर यह मन में आया
अम्माँ अपना रामलुभाया,
लगता है वह दुखी बड़ा है
कल कक्षा में खाली आया।

उसके पास किताब नहीं है,
तब यह सोचा, यही सही है,
उसको चलूँ, किताबें ले दूँ
इतनी बात आपसे कह दूँ!
</poem>
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