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17:46, 13 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजी सेठ
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|संग्रह=
}}
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<poem>कोई तो कारण था
बंध जाने दिया था
अपने को
तुम्हारी मुट्ठियों में
कोई तो कारण है
खुल गई हूं
नीले आकाश
विपुल अथाह के बीच
पूरी
पूरी तरह निर्द्वन्द्व!
</poem>
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