694 bytes added,
18:53, 13 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन प्रियदर्शिनी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatStreeVimarsh}}
<poem>उकडू बैठ कर
घुटने मोड़ कर
उम्र भर
इस उम्र
हर सदी हर युग
मैंने छुपाई हैं प्रताड़नाएं...
पर निकल गया है अब अंधड़
निकल गया है सारा बडवानल...
मैं अब घुटने सीधे कर
रही हूं फेरने के लिए
लहरों का रुख...!
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader