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सामना / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
Kavita Kosh से
उकडू बैठ कर
घुटने मोड़ कर
उम्र भर
इस उम्र
हर सदी हर युग
मैंने छुपाई हैं प्रताड़नाएं...
पर निकल गया है अब अंधड़
निकल गया है सारा बडवानल...
मैं अब घुटने सीधे कर
रही हूं फेरने के लिए
लहरों का रुख...!