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21:48, 28 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पारुल पुखराज
|संग्रह=
}}
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<Poem>
एक चित्त के उजाले पर
गिर रहा
उजाला दूजे चित्त का
एक लोक पर
छाया
दूजे लोक की
नींद पर जीव की, अजीव का पहरा
उच्चारता अजानी दिशा में
नाम मेरा
मेरे पूर्वजों का
न जाने
कौन
चेतना
बंधी गाय
रंभा रही
</Poem>