भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अजीव का पहरा / पारुल पुखराज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक चित्त के उजाले पर
गिर रहा
उजाला दूजे चित्त का

एक लोक पर
छाया
दूजे लोक की

नींद पर जीव की, अजीव का पहरा

उच्चारता अजानी दिशा में
नाम मेरा
मेरे पूर्वजों का

न जाने
कौन

चेतना
बंधी गाय
रंभा रही