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21:49, 28 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पारुल पुखराज
|संग्रह=
}}
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<Poem>
कुतरने की आवाज़ नहीं
रेंगने की सिहरन से भरी
रात
चुप के सहारे
कट जाती
चुप की देह
चींटियों से
अटी
</Poem>
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