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19:41, 30 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ज़ाहिद अबरोल
|संग्रह=दरिया दरिया-साहिल साहिल / ज़ाहिद अबरोल
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
मुलाज़मत से मिली है अभी नजात मुझे
नई नवेली दुलह्न सी लगे हयात मुझे
सुलाए रखता हूं जिसको मैं अपने अंदर ही
जगाए रखती है उसकी इक एक बात मुझे
जिसे सिखाई थी शतरंज अब वही शातिर
बिना दिये कोई शह दे रहा है मात मुझे
नहीं था तू वहां लेकिन दिखाई देता था
सुना है अपनों ने घेरा था पिछली रात मुझे
मिरे ख़ुदा! मिरी फ़ितरत में है सबुकपाई
मिरे ख़याल को परवाज़ दे, सबात मुझे
कहां से ज़ख़्म लिया और कहां दिया “ज़ाहिद”
समझ न आई यही ज़िन्दगी की बात मुझे
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