भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुलाज़मत से मिली है अभी निज़ात मुझे / ज़ाहिद अबरोल
Kavita Kosh से
मुलाज़मत से मिली है अभी नजात मुझे
नई नवेली दुलह्न सी लगे हयात मुझे
सुलाए रखता हूं जिसको मैं अपने अंदर ही
जगाए रखती है उसकी इक एक बात मुझे
जिसे सिखाई थी शतरंज अब वही शातिर
बिना दिये कोई शह दे रहा है मात मुझे
नहीं था तू वहां लेकिन दिखाई देता था
सुना है अपनों ने घेरा था पिछली रात मुझे
मिरे ख़ुदा! मिरी फ़ितरत में है सबुकपाई
मिरे ख़याल को परवाज़ दे, सबात मुझे
कहां से ज़ख़्म लिया और कहां दिया “ज़ाहिद”
समझ न आई यही ज़िन्दगी की बात मुझे
शब्दार्थ
<references/>