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मुलाज़मत से मिली है अभी निज़ात मुझे / ज़ाहिद अबरोल


मुलाज़मत से मिली है अभी नजात मुझे
नई नवेली दुलह्न सी लगे हयात मुझे

सुलाए रखता हूं जिसको मैं अपने अंदर ही
जगाए रखती है उसकी इक एक बात मुझे

जिसे सिखाई थी शतरंज अब वही शातिर
बिना दिये कोई शह दे रहा है मात मुझे

नहीं था तू वहां लेकिन दिखाई देता था
सुना है अपनों ने घेरा था पिछली रात मुझे

मिरे ख़ुदा! मिरी फ़ितरत में है सबुकपाई
मिरे ख़याल को परवाज़ दे, सबात मुझे

कहां से ज़ख़्म लिया और कहां दिया “ज़ाहिद”
समझ न आई यही ज़िन्दगी की बात मुझे

शब्दार्थ
<references/>