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02:48, 15 नवम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनिरुद्ध उमट
|संग्रह=
}}
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<poem>
सपने में वह फोन पर
बता रहा होगा
अपना अधूरा रह गया सपना
उसकी आवाज
दरांती से मेरे सपनों को
काट रही होगी
जब मैं कहूँगा
कल आधी रात बाद
अपने रो पड़ने की बात
तब वह किसी विक्रम-सा
मुझे किसी वैताल-सा कंधे पर लादे
धुँए में विलीन होता
दिखायी देगा।
</poem>