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धुँए में कंधा / अनिरुद्ध उमट
Kavita Kosh से
सपने में वह फोन पर
बता रहा होगा
अपना अधूरा रह गया सपना
उसकी आवाज
दरांती से मेरे सपनों को
काट रही होगी
जब मैं कहूँगा
कल आधी रात बाद
अपने रो पड़ने की बात
तब वह किसी विक्रम-सा
मुझे किसी वैताल-सा कंधे पर लादे
धुँए में विलीन होता
दिखायी देगा।