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23:06, 8 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=उर्मिला माधव
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|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}
<poem> राह जो चलनी है इसमें खूबियाँ कोई नहीं,
रूह-ए-खुद को छोड़ के वक़्त-ए-गिरां कोई नहीं,
पथ्थरों के आदमी हैं और दहर जलता हुआ,
चिलचिलाती धूप है ऑ आशियाँ कोई नहीं,
और कितना आज़माना,जो हुआ वो खूब है,
तुम वही हो, हम वही राज़-ए-निहां कोई नहीं,
है नया कुछ भी नहीं क्यूं इस क़दर हैरां हुए,
साथ चलने को तुम्हारे,अय मियाँ कोई नहीं,
सामने मक़्तल हुआ लो फ़िक़्र से खारिज़ हुए,
बस यही रस्ता है जिसके दरमियाँ कोई नहीं! </poem>