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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>हुई देर तक हंसी ठिठोली ,
दादी ने जब खो खो खेली |

दौड़ रही थी दादी आगे ,
पीछे दौड़ी नानी |
नहीं पा सकी नानी उनको ,
लगीं मांगने पानी |
हंसी खूब बच्चों की टोली|
दादी ने जब खो खो खेली |

दादी हारीं नानीं हारीं,
दोनों का दम फूला |
सूज गया दादी का घुटना ,
नानीं जी का कूल्हा |
मोल व्यर्थ में आफत ले ली |
दादी ने जब खो खो खेली|

हाय! बुढ़ापे में मत दौड़ो ,
बच्चे अब समझाते|
कैसे रहना कैसे जीना,
बूढ़ों को सिखलाते |
खाना पड़ी दर्द की गोली ,
दादी ने जब खो खो खेली |</poem>
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