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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>महिने में कम से कम आएं
हे भगवन पंद्रह इतवार |

पता नहीं क्यों सात दिनों में ,
बस इतवार एक आता |
छ: दिन का बहुमूल्य समय तो ,
शाळा में ही धुल| जाता |
ऐसे में कैसे चल पाये ,
खेल कूद का कारोबार |

शाळा एक दिवस लग जाए ,
दिवस दूसरे छुट्टी हो|
रोज रोज पढ़ने लिखने से,
कैसे भी हो कुट्टी हो |
एक -एक दिन छोड़ हमेशा ,
हम छुट्टी से हों दो चार |

पढ़ना लिखना बहुत जरूरी ,
बात सभी ने मानी है |
खेल कूद भी है आवश्यक ,
कहते ज्ञानी ध्यानी हैं |
खेल कूद से ही तो बनता ,
सच में स्वस्थ सुखी परिवार |

पढ़ें एक दिन ,खेल एक दिन,
यह विचार कितना अच्छा ,
इस विचार से झूम उठेगा ,
इस दुनियां का हर बच्चा |
बच्चों का भी कहना मानों ,
बच्चों का ही तो संसार |</poem>
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