Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार रवींद्र
|अनुवादक=
|संग्रह=चेहरों के अन्तरीप / कुमार रवींद्र
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>पाँव नंगे
रेत के फैलाव खारे
बस्तियाँ कड़वे धुँओं की

हर सरोवर के किनारे
दिन-ढले तक
आहटें हैं
धूप की मीनार के नीचे
कई टकराहटें हैं

वही खबरें
चुके सूरज के शहर में
थके कंधे-बाज़ुओं की

मुट्ठियों में प्यास बाँधे
लोग आँगन में
खड़े हैं
बादलों के चित्र नीले
बंद कमरों में जड़े हैं

वही पिछली आदतें
सागर किनारे
खोज है मीठे कुँओं की
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits