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सब कुछ, कुछ-कुछ / राग तेलंग

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<poem>कुछ को जानता नहीं था
तब तक कुछ नहीं था

कुछ को जब जाना
पता चला
सब कुछ के होने का

सब कुछ भी
सब नहीं
यह समझा
कुछ नहीं से शुरूकर

अब नहीं कहता
जानता कुछ नहीं
न ही
जानता सब कुछ

बस
समझता हूं
कुछ-कुछ । 

</poem>
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