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13:48, 19 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राग तेलंग
|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}
<poem>रात के बाद रात ही नहीं है
दिन के बाद जरुर है दूसरा दिन
कितना नया है सारा कुछ
आसपास कितना तो अनचीन्हा
कितने नए पत्ते-फूल हर बार
कितने तो आते वसंत
अगर बुलाया अभी तुमने मेघों को आकाष से
साथ तारे भी बूंद. बूंद झर पड़ेंगे ।
</poem>
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