912 bytes added,
14:42, 19 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राग तेलंग
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>तितली
परदों वाले घर में रहती थी
हालांकि
कभी.कभार ही निकल पाती थी
घर से बाहर
और जब घर से बाहर निकलती थी देखते ही बनती थी
उसकी बाहें मचलने लगती थीं पंखों की तरह
हवा से बातें करने का हुनर
उमग उठता था भीतर उसके
सब देखते रह जाते थे उसे
वह किसी को तब नज़र भर देखती थी
जब कोई पुकारता था उसे
मन नही मन
ऐ ! तितली !!
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader