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कमाल की औरतें २७ / शैलजा पाठक

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|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी
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<poem>अब गौरैया निशाने पर है
अचूक है तुम्हारा निशाना

तुम एक-एक कर मारना उसे
आखिरी गौरैया को मार कर
उसका पंख रखना निशानी

जब अकाल पड़ेगा
जब नदी सूख जाएगी
जब फसल काले पड़ जायेंगे
जब भर जाएगी तुम्हारे आंखों में रेत

ज़िन्दगी ख़त्म होने के पहले
अपनी काली माटी में रोप देना वो रखा हुआ पंख
उसी में भरी थी उड़ान
उसके ƒघोंसले का पता
उसके बच्चे की भूख

वो धरती को मना लेगी
तुम्हें एक और बार जनेगी
और तुम बार-बार साधना निशाना
शिकारी हो तुम।
</poem>
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