Changes

कमाल की औरतें ३७ / शैलजा पाठक

924 bytes added, 10:19, 20 दिसम्बर 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलजा पाठक |अनुवादक= |संग्रह=मैं ए...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शैलजा पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatStreeVimarsh}}
<poem>बगल के कमरे से
ऊंची आवाज़ों का आना

सामान का बिखर जाना
छोड़ दूंगा चली जाऊंगी का
बार-बार दुहराया जाना

कुछ तमाचे सिसकियां
कुछ ठहरा सा सन्नाटा

देर रात पास वाले कमरे में
कांपते रहे ब‘चे
पांच साल की गुडिय़ा
जरा से बड़े भाई की गोद में
चिपक कर सो गई

इस तरह एक और सुबह हो गई।</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits