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10:21, 20 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शैलजा पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी
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<poem>लड़कियां पक के तैयार हैं अब काट दो
लड़कियां अकेली मिलें तो बांट लो
अबकी बो लो लड़कियों के बीज
धरती-धरती को लेकर सो जायेगी
जमीं बंजर हो जायेगी
छोटी सी पायल में खनकेगा घर का आंगन
शीशे में चिपकी बिंदी आग सी दहकेगी
तुम हाथ सेंकना।
</poem>