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20:45, 20 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शैलजा पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>सूखे पत्तों सी
चरमरा रही
धरती
हरा हार गया
एक कुआं भागता है
गांव के रास्ते पर
प्यास पीछा करती है
समय से पहले मरे पेड़ों की
चिता पर
कुछ भूख सिकती है।</poem>
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