Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>दिल में फिर अरमान जगे हैं.
सोये थे मेहमान जगे हैं.

गाँवों में सूरज से पहले,
खेत जगे खलिहान जगे हैं.

उनके दोष छिपाने खातिर,
दीन-धरम-ईमान जगे हैं.

कृष्ण अभी पैदा हों कैसे,
जेलों के दरबान जगे हैं.

जब-जब आँख तरेरी उसने,
बस्ती के शमशान जगे हैं.

जगते तो दिखते हैं सारे,
पर क्या सब इन्सान जगे हैं.
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits