1,274 bytes added,
03:43, 25 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>होठों पर मुस्कान तो है.
जीने का अरमान तो है.
आलीशान भले ना हो,
अपना एक मकान तो है.
माना वो भगवान नहीं,
पर अच्छा इन्सान तो है.
कल ग़ुल भी आ जायेंगे,
घर में इक गुलदान तो है.
दूर भले है तुझसे वो,
रखता तेरा ध्यान तो है.
बाहर दिखता हो या नहीं,
भीतर इक तूफान तो है.
छोड़ो चिंता खिड़की की,
खोलो रौशनदान तो है.
क्या है अच्छा और बुरा,
तुमको इसका ज्ञान तो है.
क़र्ज़ न हो सर पर तो क्या,
बेटी एक जवान तो है.
कैसा भी हो पर रिश्ता,
दोनों के दरम्यान तो है.
</poem>