भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुस्कान तो है / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

होठों पर मुस्कान तो है.
जीने का अरमान तो है.

आलीशान भले ना हो,
अपना एक मकान तो है.

माना वो भगवान नहीं,
पर अच्छा इन्सान तो है.

कल ग़ुल भी आ जायेंगे,
घर में इक गुलदान तो है.

दूर भले है तुझसे वो,
रखता तेरा ध्यान तो है.

बाहर दिखता हो या नहीं,
भीतर इक तूफान तो है.

छोड़ो चिंता खिड़की की,
खोलो रौशनदान तो है.

क्या है अच्छा और बुरा,
तुमको इसका ज्ञान तो है.

क़र्ज़ न हो सर पर तो क्या,
बेटी एक जवान तो है.

कैसा भी हो पर रिश्ता,
दोनों के दरम्यान तो है.