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16:03, 23 जनवरी 2016 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विनोद स्वामी
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
}}
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<poem>
गळी री नाळी में
तिरतो बगै
एक तिणकलो।
वीं माथै
अबार ई
एक मकोड़ो
आंटी लगा’र चढ्यो है
अर सकून साथै
हाथां सूं पूंछ्यो है मूं।
हाल
जीवण-मरण रो
जुध होयो है अठै
जकै में
जीवण जीत्यो है।
म्हनैं लाग्यो
गळी री नाळी में
तिरती बगै एक
सांवठी कविता।
</poem>