850 bytes added,
16:21, 23 जनवरी 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरि शंकर आचार्य
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
घोर सरणाटै मांय पड़ी
उणरी लास
उडीकै
पंचभूतां सूं मिलण सारू।
पण
स्यात उण रो कोई कोनीं
जिण सूं कर सकै
उण री काया अरदास।
उण रै कानीं उठण वाळी
हर एक संवेदना
खिण भर री है।
अरे भाई!
बगत किण रै कनैं है?
हां,
चीलखा, कागला अर कुत्ता
जरूर बणासी
उणनैं आपरो भख।
</poem>