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05:43, 3 फ़रवरी 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
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<poem>
पालै जग सकल सदाहीं जगदीस जोई,
::सिरजत सहजहीं त्यों चाहि चित छन मैं।
दूध दधि चाखन को जाँचै ग्वालनीन ढिग,
::नाचै दिखराय रुचि रंचक माखन मैं॥
प्रेमघन पूजत सुरेस औ महेस सिद्धि,
::नारद मुनीस जाहि ध्यावैं सदा मन मैं।
गोकुल मैं सोई ह्वै गुपाल गऊ लोक वासी,
::गैयन चरावत बिलोको वृन्दावन मैं।
</poem>
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