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|रचनाकार=धीरेन्द्र
|संग्रह=करूणा भरल ई गीत हम्मर / धीरेन्द्र
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<poem>
हम नेह नगरकेर बासी छी।
नहि कल, बल, छल हम किछु जानी,
बस स्नेहक टा विश्वासी छी।
हम जन्मजात अभिशप्त,
रहल सदिखन लक्ष्मीकेर कोप बनल।
वीणावादिनिकेर प्रेमी हम,
यायावरकेर ई वेष हमर।
नहि जानि ने क्ये अछि टूटि गेल,
माइक ममता, बापक सिनेह।
भाइक सम्बन्ध, बहिनक दुलार
स्नेहक बदलामे आघाते सहबाकेर
हम अभ्यासी छी।
नहि भेटओ कतहु ई भिन्न
मुदा स्नेहे टा काबा-काशी छी
हम नेह नगरकेर बासी छी !!
</poem>
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