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तरबन्ना सें होय केॅ आबै छै साँपिन डगर,
की कभी ओकरा पर तोहरोॅ ठहरलोॅ छौं नजर ?
साकार कविता छेकै अद्भुत छै ओकरोॅ छन्द,
एक-एक मोड़ छेकै एकरोॅ स्टेंजा आकि अलग-अलग बंद।
एक-एक भ$ाड़-विरिछ कोमा-सेमिकाॅलन छेकै,
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