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साँपिन डगर / श्याम सुन्दर घोष
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22:04, 28 जुलाई 2016
तरबन्ना सें होय केॅ आबै छै साँपिन डगर,
की कभी ओकरा पर तोहरोॅ ठहरलोॅ छौं नजर ?
उ
ऊ
साकार कविता छेकै अद्भुत छै ओकरोॅ छन्द,
एक-एक मोड़ छेकै एकरोॅ स्टेंजा आकि अलग-अलग बंद।
एक-एक भ$ाड़-विरिछ कोमा-सेमिकाॅलन छेकै,
Rahul Shivay
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