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क्यों जुबां पर मेरी आ गयी हैं प्रिये / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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00:13, 6 अगस्त 2016
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क्यों
जुबां
ज़ुबाँ
पर मेरी आ गयी हैं प्रिये
थीं छुपानी जो बातें, कही हैं प्रिये
सब की नज़रें उठी की उठी हैं प्रिये
ग़म नहीं दर खुले
न
ना
खुले अब कोई
शुक्र है, खिड़कियाँ तो खुली हैं प्रिये
SATISH SHUKLA
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