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16:28, 20 अगस्त 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
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<poem>
प्रभात जम्हात उठी अँगिराय,
::उठाय दोऊ कर पुंज उदोति।
मिली जुग पंचन की अँगुरी भुज,
::मध्य उगी मुख की जगि जोति॥
रसै बरसै रमनी घन प्रेम,
::सुधा सुखमा की बनी मनो सोति।
किधौं जनु दामिनि मंडल ह्वै,
::ससि घेरत कैसी सुसोभित होति॥
</poem>
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