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15:01, 16 सितम्बर 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
| रचनाकार= दीपक शर्मा 'दीप'
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<poem>
था करम आपका मोहल्ले में
मैं नहीं चल सका मोहल्ले में I
जो ज़रुरत थी , वो ज़रुरत है
और सब हो गया मोहल्ले में I
आपने , मैंने और हम सब ने
कुछ बदलने दिया मोहल्ले में ?
इस मोहल्ले में भी मोहल्ले हैं ?
आपने क्या किया मोहल्ले में ?
शक्ल उतरी है , लड़खड़ाते हो
यार क्या खा लिया मोहल्ले में ?
</poem>