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फूलों ने अधर न खोले / हरि ठाकुर
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20:01, 1 नवम्बर 2016
खिलकर, झरकर।
बसते रहे सुरभि ले कर वे
साँसों के पथ, ह्रदय उतर
कर।।
कर।
कोई ऐसा
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