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सूरज अपने पाँव चले / डी. एम. मिश्र
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12:00, 1 जनवरी 2017
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<poem>
चाँद चढ़े
तारों के रथ पर
सूरज अपने पाँव चले
नदी तुम्हारी
तुम जानो
हम लेकर अपनी नाव चले
आकाश देखता रह जाये
बादल आवारा छा जाये
बूँदों की सीढ़ी
जोड़े तो
सीधे धरती पर
आ जाये
उद्यान विहँसकर
क्या पाये
खुशबू तितली है
उड़ जाये
गलियों-गलियों में इतराये
सबकी साँसों में बस जाये
गठरी होती तो रख देते
चुपचाप कहीं भी चल देते
लेकिन इस मायानगरी में
मुट्ठी में बंद स्वभाव चले
तन्हा -तन्हा वन अकुलाये
तुम जुड़ो तो
जीवन बन जाये
मैं दे दूँ अपनी हरियाली
तुम दे दो अपनी चहल-पहल
यदि मिट्टी को
आकार मिले तो
बन जाये वो शीशमहल
शबनम में मोती छवि देखे
पानी में दर्पण मुख धो ले
नवप्रकाश का दीप जले
जब जगमग-जगमग गाँव चले
</poem>
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