Changes

}}
<poem>
क्रांति प्रकाशन हवय एक ठन, क्रांति हवय मालिक के नामओहर पत्र मोर तिर भेजिस – तंय हा रचना लिख धुआंधार।पूर्ण होय तंह भेज पाण्डुलिपि, ओला मंय हा देहंव मानसबले पूर्व प्रकाशित करिहंव, मंय देवत हंव सत्य जबान।”अतका बोल किहिस अउ मेहरु-”दीस भरोसा क्रांति हा जेनपुस्तक मोर प्रकाशित होहय, पर नइ पाय झूठ के वार।”मेहरुबहल बात ला छेंकिन, अउ “दरबार हाल’ मं गीनलेखक मन तिर एमन अमरिन, अपन अपन परिचय ला दीन।उहां मिलापा दानी सन्तू, छन्नू ढेला साथ बिटानसातो बइसाखू परसादी, हवंय काव्य के गुणी अनेक।दानी टेस बतावत जेकर रुतबा सब ले ऊंचा।दूसर लेखक हवंय निहू अस – छरकत पूरा घूंचा।जहां कार्यक्रम के हल रेंगिस, दानी कथय -”मित्र सुन लेवआज जगत मं बहुत समस्या, ओकर पर कइ ठक तकलीफ।तुम्मन बुद्धिमान मनखे अव, देव समस्या ऊपर ध्यानजेन विषय पर सोच डरे हव, ओला इहां राख दव खोल।”सन्तू कथय -”रखे बर चाहत – विश्व शांति पर ठोस विचारबम घातक हथियार बने हें, उंकर होय अब खुंटीउजार।छोटे राष्ट्र देश बड़का हें, ओमन भुला जांय सब भेदबड़े पलोंदी दे नान्हे ला, सग भाई अस राखंय प्रेम”मेहरुकिहिस – “करंव नइ चिकचिक, मगर मोर बस इही सलाह-“यथा बाग मं फूल बहुत ठक, एक साथ खिल पात पनाह।इसने साहित्यिक बगिया मं, जमों विधा मन भोगंय राजपावंय मान पाठ्य पुस्तक मं, शहराती ग्रामीण समाज।”सातो कथय -”जगत सब बर हे, सब प्राणी हें एक समानमानव पशु पक्षी अउ कीरा, सब के देह एक ठन जान।कोई ककरो करय न हत्या, दूतर ला झन बांटय पीरमानव सबले बुद्धिमान हे, तब दूसर के जान बचाय।”लेखक मन हा सुन्ता बांधिन, दानी ला अध्यक्ष बनैनउहां जतिक अस नगरीय लेखक, लेखकसंघ के पद ला पैन।मेहरु बहल गांव के लेखक, भतबहिरा अस पद नइ पैनयद्यपि एमन तर्क ला राखिन, लेकिन चलन पैस नइ टेक।मेहरुकिहिस -”लेख मं देथव – जम्मों झन ला सम अधिकारलेखक संघ मं भेद रखत हव, हमला खेदत हव चेचकार।गांव के अन्न शहर मं जाथय, शहर गांव ला देत समानउसने शहराती देहाती, आपुस मं बांटंय पद मान।”एकर बाद खाय बर बइठिन, बंटिस उहां पर खाद्य पदार्थएमां सब ला मिलिस बरोबर, होइस पूर्ण सबो के स्वार्थ।बहल हंसत मेहरुला बोलिस – “लेखक संघ के बैठक होयहमर पुकार भले झन होवय, लेकिन पहुंच जबो हम दोंय।”मेहरुखुलखुल हांसत बोलिस – “मिलिस खाय बर स्वादिल चीजतेकर लालच तोला धरलिस, तब आबे का बिगर बलाय?”“हम्मन हा यदि सरलग आबो, लेखक संघ हा करिहय पूछखूब अंटा के डोरी बनथय, अलग अलग जे नरियर बूच।”एकर बाद रात करिया गिस, तंहने होइस नाटक एक“दयामृत्यु’ नाटक के नामे, लेखक ए सुरेश सर्वेद।::::'''दया मृत्यु''' '''पात्र परिचय''' 
प्रोफेसर अनूप – आकाश का मित्र
आकाश – सेफ्टी लाइफ नामक यंत्र का निर्माता वैज्ञानिक
अन्य सदस्य
प्रपात – अल्जीमर रोग से पीड़ित व्यक्ति
डा। डा. महादेवन – आकाश को दयामृत्यु देने ही इन्हें आदेश मिलता है। इसमें ये असफल रहते हैं।बालक – डॉ। डॉ. महादेवन द्वारा अस्पताल से लाया अनाथ बालक
विश्वास – क्राचीद का सदस्य
अन्य – जीप चालक, नर्स।
(प्रोफेसर अनूप के निवास के सामने वैन आकर रुकता है। वैन चालक नीचे आकर दरवाजा खोलता है। वैज्ञानिक आकाश नीचे आते हैं- चालक वैन का दरवाजा बंद कर देता है। वैज्ञानिक आकाश प्रोफेसर अनूप के निवास में प्रवेश करते हैं।
अनूप चिंता में डूबे हैं- जूतों की आवाज उनके कानों में घुसती है। वे दृष्टि उठाकर देखते हैं। सामने आकाश को पाते हैं।)
प्रो।अनूप प्रो.अनूप – (हड़बड़ाकर) आ-आप ………।!”
आकाश – आप तो ऐसे चौंक रहे हैं मानों कानों में विस्फोट हो गया हो।”
अनूप – (बनावटी मुस्कान होठों पर बिखेर कर) अरे नहीं। मैं कहां चौंका हूं! (सोफे की ओर संकेत करते हुए) बैठिये।”
नर्स – यस सर………।!”
दृष्य परिवर्तन
(आकाश को प्राइव्हेट रूम में रखा गया है। वे पीड़ा से कराह रहे हैं। डॉ। डॉ. आशुतोष आते हैं। सुई लगाते है। नर्स दवाई देती है। आकाश उसे खाते हैं।)
आकाश – डाक्टर साहब, आखिर ये कब तक चलेगा- जब भी पीड़ा उठती है। इंजेक्शन दवाइयां दे देते हैं। औषधि के प्रभाव तक पीड़ा दबी रहती है। खत्म होते ही पुन& बलवती हो जाती है।”
आशुतोष – आप धैर्य रखें। आप शीघ्र पूर्ण स्वस्थ हो जायेंगे।”
आकाश – हां, आप अवश्य जायें। मैं किसी भी हालत में मरना चाहता हूं। मुझे “दयामृत्यु’ की अनुमति दिलाइये।”
(सुमन अस्पताल से निकलती हैं। वह स्कूटर में सवार होती हैं। स्कूटर सड़क पर दौड़ने लगता है।
(डॉ। डॉ. आशुतोष अपने कार्यालय में बैठे हैं। उनके कानों में आकाश की आवाज अब तक गूंज रही हैं।)
आवाज – मेरा जीवन अंधकार मय है डाक्टर, कृपया उसमें आश्वासन की ज्योति न जलायें। आप सांत्वना रूपी औषधि का प्रचार करना छोड़ दे। आप मुझे धोखा न दें…। धोखा न दें……!”
(उसी समय नर्स प्रवेश करती है।)
नर्स – (आसुतोष से) सर…………!”
(डॉ। डॉ. आसुतोष आवाज से बाहर आते हैं। नर्स की ओर देखते हैं।)
नर्स – सर, आकाश पुन& पीड़ा से व्यथित हो गये हैं। उन्हें सम्हाल पाना कठिन हो रहा है……!”
आशुतोष – (खीझकर) उन्हें मरने दो………!”
(डा। महादेवन तैयार होते हैं। वे दर्पण के सामने खड़े होते हैं। दर्पण में उनका प्रतिरूप उपस्थित होता है।)
प्रतिरूप – तो डा। साहब, आप आकाश को मृत्यु प्रदान करेंगे ही न?”
(डॉ। डॉ. की खीझ बढ़ जाती है)
डा।महादेवन – हां, न्यायालय का मुझे आदेश मिला हैं। मैं आदेश का निरादर करके अपना भविष्य अंधकार में नहीं डाल सकता।”
प्रतिरूप – आप आकाश का उपचार करके स्वस्थ करने से तो रहे! हां, उन्हें मृत्यु प्रदान आसानी से कर सकते हैं। क्यों सही है। न डाक्टर!”
(डा। महादेवन स्नेह का हाथ फेरकर आगे बढ़ जाते है।)
अस्पताल का दृष्य
(डॉ। डॉ. महादेवन अस्पताल में प्रवेश करते हैं। आकाश पलंग पर सोये हैं। उनके पास “मृत्यु मशीन’ रखी हैं। डा। महादेवन वहां प्रवेश करते हैं। आकाश उनकी ओर देखते हैं। डॉ।महादेवन डॉ.महादेवन को लगता है कि आकाश उनसे कह रहे हैं)आवाज – आइये डॉ। डॉ. साहब, आपका स्वागत है। आप उपचार करके मेरी पीड़ा खत्म नहीं कर सके तो मृत्यु प्रदान करने आ गये। आइये, मुझे मृत्यु स्वीकार है। आज से आप डाक्टर लोग यह तो नहीं कहेंगे कि हम दूसरे ईश्वर है। मरते हुए को प्राण देते हैं।”
डा।महादेवन – (आकाश की ओर कदम बढ़ाते हुए मन ही मन) आपको जीवन से मुक्ति दिलाने का आदेश न्यायालय ने दिया है। मैं उसके आदेश का पालन करुंगा ही।”
(डा। महादेवन आकाश के पास पहुंचते हैं। वे मृत्यु मशीन का बटन दबाने हाथ बढ़ाते हैं। मगर उनके हाथ कांपने लगते हैं)
डा।महादेवन – (स्वयं से) अरे, अनायास मेरे हाथ को क्या हो गया। वह मृत्यु मशीन के बटन को क्यो नहीं दबा सका। मेरा ह्रदय इतना अधिक क्यों धड़क रहा है। मेरी शक्ति पल पल क्षीण क्यों हो रही है।?”
(डा। महादेवन बटन पर उंगली रखते हैं। उनकी उंगली कांपने लगती हैं। माथे पर पसीना उभर आता है। आकाश, डाक्टर के हावभाव को देखते है।)
आकाश – (डॉ। डॉ. को साहस देते हुए) डा। साहब, आप शीघ्र कीजिये। बटन दबाइये। मृत्यु मशीन आपको आमंत्रित कर रही है। आप पराजय मत मानिये। डा। साहब, आप शीघ्र कीजिये।”(मगर डॉ।महादेवन डॉ.महादेवन बटन दबाने में असमर्थ हो जाते हैं। वे बटन से हाथ खींच लेते हैं)
आकाश – (कलरव करते हैं) आप हार क्यों मान रहे हैं। मुझे मृत्यु चाहिये। मुझे मृत्यु दीजिये।”
(डॉ। डॉ. महादेवन बाहर निकल जाते हैं।)आकाश – (जोर जोर से चीखते हैं।) डॉ। डॉ. साहब, ये आपने क्या किया- रूक जाइये। मुझ पर दया कीजिये। मुझे मृत्यु प्रदान कीजिये……।”
(आकाश चीख चीखकर बेहोश हो जाते हैं।)
दृष्य परिवर्तन
मृणाल – समाचार सुनेंगे तो आप भी प्रसन्नता से खिल जायेंगे।”
चन्द्रहास – यहां हम समस्याओं में उलझे हैं और आप प्रसन्नता की बात कर रही हैं।!”
मृणाल – डॉ। डॉ. महादेवन अपने कार्य में असफल हो गये।”
सभी सदस्य – क्या, आप सच कह रही हैं?”
मृणाल – हां, वे मृत्यु मशीन का बटन नहीं दबा सके। वे निलम्बित कर दिये गये हैं। उनके बदले डॉ।सुरजीत डॉ.सुरजीत को आदेशित किया गया है।”
समीर – इसका तात्पर्य हमें भरपूर समय मिल गया।”
मृणाल – हां समीर, पूरा पूरा समय मिला हैं। हमें अपना कार्य शीघ्र निपटाना होगा।”
चन्द्रहास – मगर यह अपराध है। जबकि “मासुस’ अपराधिक कर्म को स्वीकार नहीं करता।”
मृणाल – हम आकाश का अपहरण फिरौती लेने थोड़े ही करेंगे। यह अपहरण अपराध नहीं कहलायेगा।”
प्रताप – मृणाल का कहना उचित है। एक उपाय मैं सुझाता हूं- आप आकाश का अपहरण कर लें। मैं उनके स्थान पर सो जाऊंगा। इससे डॉ। डॉ. सुरजीत के कार्य में अवरोध उत्पन्न नहीं होगा। और आकाश जीवित भी बच जायेंगे।”
मृणाल – तात्पर्य, आकाश को बचाने आप को मृत्यु शैया पर सुला दें।”
प्रताप – नि&संदेह।
(डा। महादेवन का निवास। वे चिंतामग्न बैठे हैं कि घंटी बजती है)
(वे दरवाजे की ओर बढ़ते हैं। कि घटी पुन& बजती है।)
डॉ।महादेवन डॉ.महादेवन – (ऊंची आवाज से) मैंने घंटी की आवाज सुन ली। मैं मरा नहीं। अभी जीवित हूं।”(वे दरवाजा खोलते हैं। सामने प्रोफेसर खड़े मुस्करा रहे है, डॉ। डॉ. हड़बड़ा जाते है।)डॉ।महादेवन डॉ.महादेवन – प्रोफेसर साहब, आप…………।
प्रोफेसर – हां, क्या अंदर आने नहीं कहेंगे!
डॉ।महादेवन डॉ.महादेवन – क्यों नहीं। आइये न।
(दोनों भीतर प्रवेश करते हैं। वे सोफे पर बैठते हैं।)
प्रोफेसर – आप बहुत खीझे हुए दिखाई दे रहे है!
डॉ।महादेवन डॉ.महादेवन – हां प्रोफेसर, आपको क्या मालूम- किसी की जीविका छिन जाती है तो उसकी क्या स्थिति होती है।प्रोफेसर – मैं आपकी पीड़ा समझ रहा हूं डॉ।”डॉ.”
महादेवन – बस इतना सांत्वना तो सभी देते हैं।”
प्रोफेसर – मैं आपको सांत्वना देने नहीं आया। मैं आपको जीविका दिलाने आया हूं।”
प्रोफेसर – न्यायालय ने आपको आकाश को दयामृत्यु देने नियुक्त किया था। उसमें आप असफल हो गये। इसे कर्यव्यहीनता माना गया। और आप निलम्बित कर दिये गये।”
महादेवन – हां
प्रोफेसर – डॉ। डॉ. सुरजीत ने अपना कार्य पूर्ण किया। इसके लिये वे पदोन्नत हुए।”
महादेवन – हां
प्रोफेसर – मगर यथार्थ में डॉ। डॉ. सुरजीत ने भी अपना कार्य नहीं किया।”
महादेवन – (आश्चर्य से) आखिर आप कहना क्या चाहते हैं। मुझे साफ साफ तो बताइये!”
प्रोफेसर – दरअसल डॉ। डॉ. सुरजीत ने जिस व्यक्ति को दयामृत्यु दी वे आकाश नहीं अपितु प्रताप थे। और वे मासुस के सदस्य थे।”
महादेवन – इसका तात्पर्य आकाश जीवित हैं। और जीवित हैं तो आप उनके रहने के स्थान को जानते होंगे?”
प्रोफेसर – हां अवश्य।
(दोनों जीप में बैठते हैं। जीप सड़क पर दौड़ता है)
प्रोफेसर – आकाश ने सेफ्टीलाईफ नामक यंत्र का आविष्कार किया है। वह मानव जीवन के लिये रक्षा कवच है।”
डॉ।महादेवन डॉ.महादेवन – अच्छा।
प्रोफेसर – हां (चालक से) दाहिना मोड़िये। वो पीला बिल्ड़िग है न वहीं जीप रोकना।”
चालक – जी हां।
(जीप दाहिना मुड़कर बिल्ड़िग के सामने रूक जाता है। दोनों जीप से नीचे आते हैं। बिल्ड़िग की ओर कदम बढ़ाते हैं।)
प्रोफेसर – इस यंत्र की खूबी है कि यह बमों को निष्क्रिय करने में पूरी तरह समर्थ है।”
डॉ।महादेवन डॉ.महादेवन – अच्छा।
प्रोफेसर – हां (एक कक्ष में प्रवेश करते हुए) आइये।
(दोनों भीतर प्रवेश करते है। सामने आकाश को पाकर डॉ।महादेवन डॉ.महादेवन के पांव ठिठक जाते है। वे चकित होकर आकाश को देखते हैं।)
आकाश – ठिठक क्यों गये डाक्टर। आइये। बैठिये।”
(डॉ। डॉ. महादेवन सोफे पर बैठ जाते हैं)आकाश – डॉ। डॉ. साहब, मै आपका आभारी हूं (सेफ्टीलाईफ को दिखाते हुए) मैं आपके ही कारण इस यंत्र का आविष्कार कर सका।”डॉ।महादेवन डॉ.महादेवन – मगर इसके बदले मुझे क्या मिला-मेरा वर्तमान और भविष्य गर्त में चला गया न!”
आकाश – मैंने इस गर्त से उबारने ही आपको बुलाया है।”
डॉ।महादेवन डॉ.महादेवन – आपका तात्पर्य?
आकाश – मैं न्यायलय में इस सेफ्टीलाईफ को दिखाऊंगा। और आपको न्याय दिलाऊंगा। आप मेरे साथ न्यायालय चलिये।”
(डॉ।महादेवन डॉ.महादेवन और आकाश जीप में बैठते हैं। जीप सड़क पर दौड़ता है)
दृष्य परिवर्तन
(क्राचीद का अडडा। ऋषभ कमर में बेल्टबम बांधता है। वह निकलने लगता है कि विश्वास कहता है)
(ऋषभ झटके के साथ आगे बढ़ जाता है)
दृष्य परिवर्तन
(न्यायालय – यहां अधिवक्ता। पक्षकार साक्षी और अन्य लोगों की भीड़ है। आकाश, डॉ।महादेवन डॉ.महादेवन के साथ न्यायालय में प्रवेश करते हैं। इसी क्षण सेफ्टीलाईफ की लालबती जलने लगती है। आकाश के कदम रूक जाते हैं)डॉ।महादेवन डॉ.महादेवन – आकाश जी, आप रूक क्यों गये?”
आकाश – सेफ्टीलाईफ संकेत दे रहा है कि यहां कोई खतरा है।”
डॉ।महादेवन डॉ.महादेवन – खतरा लेकिन कैसा खतरा?(डॉ।महादेवन डॉ.महादेवन सिहर उठते है। वे भयभीत दृष्टी से इधर-उधर देखते हैं। सेफ्टीलाईफ की पीलीबती जल उठती है)
आकाश – यहां कोई बेल्टबम पहनकर आया है। वह न्यायालय को तबाह करना चाहता है।”
(आकाश एक बटन को दबाते हैं। वे एक व्यक्ति की ओर संकेत करते हैं। वह ऋषभ है। आकाश सेफ्टीलाईफ का दूसरा बटन दबाते हैं।) अब देखना-ऋषभ का बेल्टबम निष्क्रिय हो जायेगा।”
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits