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गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 20 / नूतन प्रसाद शर्मा

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दया मृत्यु

पात्र परिचय

प्रोफेसर अनूप – आकाश का मित्र
आकाश – सेफ्टी लाइफ नामक यंत्र का निर्माता वैज्ञानिक
नीलमणि – वैज्ञानिक
प्रेमपाल – वैज्ञानिक
ऋषभ – क्राचीद का विद्वान सदस्य
प्रणव – बेल्ट बम दबाकर वैज्ञानिकों को हताहत करने वाला
आसुतोष – अस्पताल में आकाश की देखरेख इनके ही जिम्मा होती है।
सुमन – आकाश का अधिवक्ता
अमर – शासकीय अधिवक्ता
नागार्जुन – न्यायाधीष
मासुस के – समीर, चन्द्रहास, मृणाल
अन्य सदस्य
प्रपात – अल्जीमर रोग से पीड़ित व्यक्ति

डा. महादेवन – आकाश को दयामृत्यु देने ही इन्हें आदेश मिलता है। इसमें ये असफल रहते हैं।
बालक – डॉ. महादेवन द्वारा अस्पताल से लाया अनाथ बालक
विश्वास – क्राचीद का सदस्य
अन्य – जीप चालक, नर्स।
नाटक प्रारंभ
(प्रोफेसर अनूप के निवास के सामने वैन आकर रुकता है। वैन चालक नीचे आकर दरवाजा खोलता है। वैज्ञानिक आकाश नीचे आते हैं- चालक वैन का दरवाजा बंद कर देता है। वैज्ञानिक आकाश प्रोफेसर अनूप के निवास में प्रवेश करते हैं।
अनूप चिंता में डूबे हैं- जूतों की आवाज उनके कानों में घुसती है। वे दृष्टि उठाकर देखते हैं। सामने आकाश को पाते हैं।)
प्रो.अनूप – (हड़बड़ाकर) आ-आप ………।!”
आकाश – आप तो ऐसे चौंक रहे हैं मानों कानों में विस्फोट हो गया हो।”
अनूप – (बनावटी मुस्कान होठों पर बिखेर कर) अरे नहीं। मैं कहां चौंका हूं! (सोफे की ओर संकेत करते हुए) बैठिये।”
आकाश – (सोफे पर बैठते हुए) छद्य मुस्कान होठों पर बिखेर लेने से चेहरे की परेशानी खत्म नहीं हो जाती।”
अनूप – आपका तात्पर्य, मैं परेशान हूं?”
आकाश – चेहरे की भाषा तो यही बताती हैं। परेशानी का कारण मुझे भी ज्ञात हो जाये तो इसमें बुराई क्या है?”
अनूप – वर्तमान में मादक द्रव्यों का उपयोग सीमा से अधिक किया जा रहा है। प्रतिभाएं इसके चंगुल में फंसकर नष्ट हो रही हैं। कल मेरे कालेज का एक छात्र और इसकी बलि चढ़ गया।”
आकाश – छात्र छात्राओं को मादक द्रव्यों के दुष्परिणाम ज्ञात हैं। इसके बावजूद वे इसका विरोध करने की अपेक्षा उपयोग करते हैं। इसमें हम कर भी क्या सकते हैं। प्रोफेसर!”
अनूप – आप तो दायित्व से मुंह मोड़ रहे हैं। जिन छात्र-छात्रओं को मैंने करीब से देखा है। जिनकी प्रतिभाओं को परखा है, उन्हें अपनी आंखों के सामने नष्ट होते देखूंगा तो मन में हलचल होगा ही न!”
आकाश – आपकी पीड़ा मैं समझ रहा हूँ।”
अनूप – सिर्फ समझना ही पर्याप्त नहीं है आकाश साहब। इस पर अंकुश लगाना आवश्यक है।(थोड़ा रूककर) सोचता हूं- जिस तरह आप “सेफ्टी लाइफ’ बना रहे हैं। जिसके उपयोग से वह बम की उपस्थिति का संकेत तो देगा ही। वह अपराधी का पता बतायेगा। साथ ही विस्फोटक वस्तु को निष्क्रिय कर देगा ……… ऐसे ही किसी औषधि का उत्पादन क्यों नहीं किया जाता! जिसके उपयोग से व्यक्ति मादक द्रव्यों से घृणा करने लगे।”
आकाश – इस पर भी कहीं न कहीं शोध हो रहा होगा। प्रोफेसर, मेरे “सेफ्टी लाईफ’ बनाने की जानकारी आपके सिवा और किसे हैं?”
अनूप – मैं आपके इस व्यवहार से हैरान हूं। आप मानवहित का काम कर रहे हैं। मगर इसे प्रकाश में नहीं लाना चाहते। आखिर क्यों?”
आकाश – मैं कार्य पूर्ण करके अपने वैज्ञानिक मित्रों को दिखाकर दंग कर देना चाहता हूं……।! और हां, आपसे उम्मीद है- आप भी इसकी चर्चा अन्यत्र नहीं करेगें।”
अनूप – आपके विश्वास को मैं टूटने नहीं दूंगा। (थोड़ा रूककर) अरे, मैं तो बातों में उलझकर आपको पानी तक के लिये भी नहीं पूछा……। चाय चलेगी न?”
आकाश – (सोफे से उठते हुए) अरे नहीं। मैं अभी जल्दी में हूं। चाय पानी खाना पीना फिर कभी होता रहेगा।”
अनूप – आप इतनी शीघ्रता में क्यों हैं! कहीं जाने की योजना है क्या?”
आकाश – विज्ञान भवन में वैज्ञानिकों की बैठक है। वहां उपस्थिति आवश्यक है।”
अनूप – तब तो मैं आपको रोकूंगा नहीं। संभव है- वहां कोई महत्वपूर्ण शोध पर चर्चा हो………।”
आकाश – तो मैं चलता हूं। फिर मुलाकात होगी।”
अनूप – (अनूप भी उठ खड़े होते हैं) चलिये, मैं आपको बाहर तक छोड़ आऊं।”
दोनों बाहर आते हैं। आकाश वैन की ओर बढ़ते हैं। अनूप गेट के पास खड़े रहते हैं। आकाश वैन में जा बैठते हैं। चालक वैन को आगे बढ़ा देता है। वैन विज्ञान भवन के आगे आकर रूकती हैं। आकाश नीचे आते है। वे विज्ञान भवन में प्रवेश करते हैं। वे “सभागृह’ में पहुंचते हैं। वहां अनेक वैज्ञानिक उपस्थित हो चुके हैं। आकाश अपनी कुर्सी पर जा बैठते हैं। इस बैठक के सभापति वैज्ञानिक नीलमणि हैं। वे सभापति की कुर्सी पर बैठे हैं।
नीलमणि – (सभा को सम्बोधित करते हैं) मित्रों, हमने स्कड प्रक्षेपास्त्रों को आकाश में ही नष्ट करने “पेट्रियट’ का आविष्कार किया हैं। “मेटल डिटेक्टर’ बमों की उपस्थिति की जानकारी दे देता हैं। मगर वर्तमान में तार पेट्रोल और बेल्टबम का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा हैं।
आतंकी अपनी कमर में बेल्टबम बांधता हैं। सभा में जाता हैं। बटन दबा देता है। विस्फोट से लाशें बिछ जाती हैं। मेरा विचार है कि हम ऐसे यंत्र का निर्माण करें जो बमों की उपस्थिति की तत्काल जानकारी दे। साथ ही बम निष्क्रिय भी हो जाये। वह अपराधी को पकड़ने मे सहायता करें……।”
प्रेमपाल – मित्रों, नीलमणि का मन्तव्य विचारीणीय है। वास्तव में हमें इस पर गभ्भीरता पूर्वक विचार करना चाहिये।”
(वैज्ञानिक आपस में सलाह मशविरा करने लगें हैं मगर आकाश की होठों पर मुस्कान उभर आयी है।)
दृष्य परिवर्तन
(यह है क्रातिकारी चीता दल नामक संस्था का अडड़ा। अल्मारियों में रायफल, बेल्टबम, तारबम इत्यादि विध्वंशक रखे हैं। एक स्थान पर टेबल कुर्सियां हैं। कुर्सी मे ऋषभ बैठे हैं। उनके हाथ मे कलम हैं। सामने टेबल पर कागज रखा हैं।
अल्मारी के पास प्रणव खड़ा बेल्टबम बांध रहा हैं। ऋषभ की दृष्टि उस पर टिकी हैं। वे प्रणव के कार्य को ध्यान से देखते हैं)
ऋषभ – (प्रणव से) प्रणव, मैं जानता हूं- आप कहां जाने की तैयारी कर रहे हैं। मगर आप जो करने जा रहे हैं, मेरी दृष्टि में उचित नहीं।”
प्रणव – (बेल्टबम कमर पर कंसते हुए) क्यों उचित नहीं! मैं भी तो एक वैज्ञानिक हूं। मैने भी शोध किया है। मगर मुझे सदैव उपेक्षित ही तो किया गया न!”
ऋषभ – संवादहीनता के कारण हम उपेक्षित रहे। इसका तात्पर्य यह नहीं कि हिंसात्मक कार्य को श्रेय दें।”
प्रणव – ये आप नहीं, आपकी कलम की शक्ति बोल रही है। आप वैचारिक लेख लिखते हैं। मसलन- दयामृत्यु कब-किसे दिया जाये! मादक द्रव्यों पर कैसे पाबंदी लगाया जाये! देश को बंटने से कैसे रोका जाय! मगर आपके उत्कृष्ट विचारों को किसने सराहा? (थोड़ा रूककर) मेरा कहा मानिये और न्यायालय को उड़ा दीजिये।”
ऋषभ – माना कि हम “क्राचीद’ के सदस्य हैं। मगर इसका अर्थ यह नहीं कि हम हिंसात्मक कार्याें को ही श्रेय देते रहें।”
प्रणव – (ऋषभ के पास आकर) अब आदर्श की बातें मुझे समझ नहीं आती। और न समझने का प्रयास करूंगा। (दरवाजे की ओर कदम बढ़ाते हुए) मैं तो चला अपना कार्य करने…।।”
प्रणव बाहर आता है। जीप में सवार होता है। और जीप सड़क में दौड़ाने लगती है। जीप “विज्ञान भवन’ के सामने आकर रूकती है। प्रणव जीप से नीचे आता है। वह विज्ञान भवन में प्रवेश करता है। सभागृह मे वैज्ञानिक सलाह मश्विरा में संलग्न हैं। प्रणव सभागृह में पहुंचते ही “बेल्टबम’ का बटन दबा देता है।
एक जोरदार धमाके के साथ बेल्टबम फट जाता है। धमाके की आवाज बाहर आती है। बाहर तैनात “सुरक्षा सैनिक’ सभागृह की ओर दौड़ते है।
सभा गृह में पांच वैज्ञानिकों के अंग क्षतविक्षत हो गये हैं। नीलमणि की टांगें और भुजाएं शरीर से अलग हो गयी हैं। प्रणव स्वयं कई टुकड़ों में बंट गया हैं। कुछ वैज्ञानिकों को सामान्य चोटें आयी हैं। वे कराह रहे हैं। आकाश के शरीर में कई छर्रे घुस गये हैं।
एक सैनिक अस्पताल फोन लगाता हैं। विज्ञान भवन की ओर एम्बुलेंस दौड़ती है। उसमें घायल और बेहोश वैज्ञानिकों को भरा जाता है। उन्हें अस्पताल में भर्ती किया जाता हैं। उनका उपचार किया जाता है।
आकाश को आपरेशन थियेटर में लाते हैं। वे बेहोश हैं। उनके शरीर से छर्रे निकालते हैं। कार्यपूर्णता पर उन्हें “एसी’ रूम में रखा जाता है।
आकाश चेतनावस्था में आते हैं। वे कराह उठते हैं। नर्स उनके पास दौड़कर आती हैं।
आकाश – सिस्टर, असहनीय पीड़ा हो रही हैं……।!”
नर्स – आप लेटे रहिये। मैं डाक्टर को बुलाकर लाती हूं।”
(नर्स, डाक्टर आशुतोष को बुलाकर लाती है)
आशुतोष – (होठों पर मुस्कान लाकर) आपका जीवन अब खतरे से बाहर है। आज शाम ही आपको “प्राइवेटवार्ड’ में अटेच कर दिया जायेगा।”
आकाश – ये सब तो ठीक है डाक्टर, मगर पीड़ा……।!”
(नर्स इंजेक्शन भरकर लाती है। आशुतोष उसे आकाश को लगाते हैं।)
आशुतोष – अब इससे आपकी पीड़ा कम हो जायेगी। (नर्स से) सिस्टर, आप इनका विशेष ध्यान रखेंगी। समय पर दवाइयां देती रहेंगी।”
नर्स – यस सर………।!”
दृष्य परिवर्तन
(आकाश को प्राइव्हेट रूम में रखा गया है। वे पीड़ा से कराह रहे हैं। डॉ. आशुतोष आते हैं। सुई लगाते है। नर्स दवाई देती है। आकाश उसे खाते हैं।)
आकाश – डाक्टर साहब, आखिर ये कब तक चलेगा- जब भी पीड़ा उठती है। इंजेक्शन दवाइयां दे देते हैं। औषधि के प्रभाव तक पीड़ा दबी रहती है। खत्म होते ही पुन& बलवती हो जाती है।”
आशुतोष – आप धैर्य रखें। आप शीघ्र पूर्ण स्वस्थ हो जायेंगे।”
आकाश – यह आश्वासन तो आप दो माह से देते आ रहे हैं। मगर न पीड़ा खत्म हुई न स्वास्थय लाभ मिला है। मैं तो ऊब गया हूं डाक्टर, इंजेक्शन और दवाइयों से (थोड़ा रूककर) मैं जानता हूं डाक्टर, मेरे कोमल अंगों में घाव बना है। उनका भर पाना असम्भव है। आप मात्र मुझे आश्वासन के बल बूते पर जीवित रख रहे हैं………।!”
आशुतोष – आप व्यर्थ भ्रम में हैं। देखना आप पूर्ण स्वस्थ होकर रहेंगे।”
आकाश – भ्रम में मैं नहीं, आप हैं, मेरा जीवन अंधेरे में है उसमें आप जीवन की ज्योति जलाते हैं……।! डाक्टर, मेरा कहा मानिये। और सांत्वना रूपी औषधि का प्रचार करना छोड़ दें। क्योकि आपके सांत्वना से विश्वास जग उठता है कि अब में स्वस्थ हो जाऊंगा। मगर मैं ही नहीं आप भी जानते हैं कि आप मुझसे विश्वास घात कर रहे हैं। आप ये छल प्रपंच का लिबास निकाल फेंके। मेरा उपचार करना छोड़ दें। ताकि मैं चैन के साथ मर तो सकूं………।!”
(उसी वक्त अधिवक्ता सुमन आती है। वह आकाश के निकट जाती हैं। डाक्टर आशुतोष बाहर चले जाते हैं।)
आकाश – (सुमन से) आप आ गयी सुमनजी, अब न्यायालय जायेंगी न……!”
सुमन – हां, आज आपके आवेदन पर बहस है।”
आकाश – आपसे मेरा एक ही निवेदन है- मुझे “दयामृत्यु’ की अनुमति दिलाने का अथक प्रयास करेंगी।”
सुमन – आप निश्चिंत रहिये। मैं आपको “दयामृत्यु’ की अनुमति दिलाकर रहूंगी।”
आकाश – हां सुमनजी, यह आवश्यक है, मुझे एक शोध करना हैं। इसके लिये मैं जीना चाहता हूं। मगर पीड़ा ने मुझे मृत्यु स्वीकारने विवश कर दिया है।”
सुमन – न्यायालय का समय हो गया है। मैं निकलूं?”
आकाश – हां, आप अवश्य जायें। मैं किसी भी हालत में मरना चाहता हूं। मुझे “दयामृत्यु’ की अनुमति दिलाइये।”
(सुमन अस्पताल से निकलती हैं। वह स्कूटर में सवार होती हैं। स्कूटर सड़क पर दौड़ने लगता है।
(डॉ. आशुतोष अपने कार्यालय में बैठे हैं। उनके कानों में आकाश की आवाज अब तक गूंज रही हैं।)
आवाज – मेरा जीवन अंधकार मय है डाक्टर, कृपया उसमें आश्वासन की ज्योति न जलायें। आप सांत्वना रूपी औषधि का प्रचार करना छोड़ दे। आप मुझे धोखा न दें…। धोखा न दें……!”
(उसी समय नर्स प्रवेश करती है।)
नर्स – (आसुतोष से) सर…………!”
(डॉ. आसुतोष आवाज से बाहर आते हैं। नर्स की ओर देखते हैं।)
नर्स – सर, आकाश पुन& पीड़ा से व्यथित हो गये हैं। उन्हें सम्हाल पाना कठिन हो रहा है……!”
आशुतोष – (खीझकर) उन्हें मरने दो………!”
नर्स – (अवाक आशुतोष को देखती है) ये आप क्या कह रहे हैं सर?”
(आशुतोष झेंप जाते हैं। वे उठकर नर्स के साथ हो लेते हैं।)
दृष्य परिवर्तन
(न्यायालय में अधिवक्ताओं, पक्षकारों व अन्य लोगों की भीड़ है। न्यायाधीष नागार्जुन अपनी कुर्सी पर बैठे हैं। अधिवक्ता सुमन और अमर पैरवी करने उपस्थित हैं।)
अमर – (न्यायाधीष से) सर, अधिवक्ता सुमन ने न्यायालय में आकाश का आवेदन प्रस्तुत किया है। उसमें दर्शाया गया है कि आकाश को “दयामृत्यु’ दी जाये। मगर मेरी दृष्टि में “दयामृत्यु’ को मान्यता नहीं देनी चाहिये।”
सुमन – सर, शासकीय अधिवक्ता अमर ने कहा कि दयामृत्यु को मान्यता नहीं देनी चाहिये। मगर क्यों? वे सभी बातें स्पष्ट रूप से बतायें!”
न्यायाधीष – (अमर से) हां, आप अपनी बात स्पष्ट कीजिये- दयामृत्यु की मान्यता का विरोध का कारण बताइये?”
अमर – सर, दयामृत्यु को मान्यता देने से व्यक्ति छोटे छोटे रोंगों से मुक्ति के लिये मृत्यु मांगने लगेगा। दूसरा रूप यह भी है कि चिकित्सक असाध्य रोग से ग्रसित व्यक्तियों एवं वृद्धों को स्वस्थ करने की जिम्मेदारी से हटेंगे।”
सुमन – सर, शासकीय अधिवक्ता का तर्क ग्राहय है। पर जिसका जीवन मृत्यु से बदतर हो। जिसका वर्तमान और भविष्य कष्टों के सागर में डूबा हो, सर ऐसे पीड़ित व्यक्ति को “दयामृत्यु’ का अधिकार मिलना ही चाहिये। (कुछ दस्तावेज न्यायाधीष को सौंपते हैं) सर, ये डाक्टर की रिपोर्ट है। इसमें आकाश से संबंधित सारे तथ्य स्पष्ट रूप से लिखे हैं।”
(न्यायाधीष नागार्जुन दस्तावेज को गंभीरतापूर्वक पढ़ते हैं। अधिवक्ता अपने अपने स्थान पर जा बैठते हैं।)
न्यायाधीष – न्यायालय ने अधिवक्ताओं के तर्क सुने। दस्तावेजों का अध्ययन किया। न्यायावय स्वयं आवेदक की स्थिति का अवलोकन करेगा। तत्पश्चात निर्णय दिया जायेगा।”
(न्यायाधीष कुर्सी से उठ खड़े होते हैं। अधिवक्ता सुमन और अमर के साथ जीप में सवार होते हैं। जीप न्यायालय परिसर से निकलकर सड़क पर दौड़ने लगती हैं। जीप अस्पताल के स्टैण्ड में रूकती हैं। न्यायाधीष नागार्जुन, सुमन और अमर जीप से नीचे आते हैं।)
सुमन – (न्यायाधीष से) सर, इधर आइये।
(वे प्राइवेट रूम के पास जाते हैं कि उनके कानों में क्रंदन की आवाजें गूंजती हैं। न्यायाधीष रूककर सुनते हैं।)
आवाज – डाक्टर, आप मुझे स्वस्थ नही कर सकते फिर मेरा उपचार क्यों करते हैं। डाक्टर, पीड़ा असहय हो गयी। आहा- ओहो…।। अब मुझे इंजेक्शन मत लगाइये। मुझे गोलियां मत दीजिये (पीड़ायुक्त आवाज) मुझे चैन से मरने दीजिये।”
(न्यायाधीष, सुमन की ओर उन्मुख होते हैं।)
न्यायाधीष – ये पीड़ायुक्त आवाज किसकी है?”
सुमन – सर, ये कारूणिक आवाज आकाश की है।”
न्यायधीष – क्या वे इतने पीड़ित हैं कि स्वयं मृत्यु मांगें।”
सुमन – हां सर, आप अपनी आंखों से देख लीजिये।”
(सुमन बाहर रुक जाती हैं)
(वे आकाश के कक्ष मे प्रवेश करते हैं। आकाश पीड़ा से कराह रहे हैं। डाक्टर आशुतोष सुई में दवाई भरने संलग्न हैं। आकाश, न्यायाधीष और अधिवक्ताओं की ओर प्रश्न दृष्टि से देखते हैं।)
आकाश – (आशुतोष से) डाक्टर साहब, ये कौन हैं- यहां क्यों आये हैं।?”
(आसुतोष सुई में दवाई भर लेते हैं। वे आकाश के पास आते हैं।)
आसुतोष – ये आपसे मिलने आये हैं।
आकाश – लोग उससे मिलने आते हैं। जो मृत्यु के पास पहुंच गया हो या जीवित हो……। पर मैं तो बीच में लटका हूं डाक्टर। पीड़ा असहनीय हो गयी है। मुझे कब तक बेहोशी की सुई दे देकर जीवित रखेंगे?
आसुतोष – अब आप शीघ्र स्वस्थ हो जायेंगे।”
आकाश – कभी नहीं। मेरे स्वास्थय में सुधार आ ही नहीं सकता। आप सुई की दवाई फर्श में चिपक दें। मेरे शरीर में मत लगाइये।”
(आकाश पीड़ा से कराहते हैं। इससे न्यायाधीष का ह्रदय दहल जाता है। आसुतोष, आकाश को सुई लगाने का प्रयत्न करते है।)
आकाश – आप मुझे सुई देना ही चाहते हैं। न- तो जहर की सुई दीजिये। मुझे मृत्यु दीजिये मृत्यु। मैं पीड़ा युक्त जीवन नहीं जीना चाहता।”
(डाक्टर इंजेक्ट कर ही देते हैं।)
आकाश – आखिर आपने सुई लगा ही दी न डाक्टर!”
(कहते कहते आकाश बेहोश हो जाते हैं। डाक्टर के चेहरे पर परेशानी और चिंता के भाव हैं।)
न्यायाधीष – (आसुतोष से) डाक्टर साहब, आप तो अत्यंत परेशान दिख रहे हैं।”
आसुतोष – जी हां, में आकाश की पीड़ित जिन्दगी से परेशान हूं। समझ नहीं आता- इन्हें कब तक आश्वासन की आशा बंधाता रहूं।”
न्यायाधीष – आप का परिश्रम सफलता लायेगा। आकाश शीघ्र स्वस्थ होकर रहेंगे।”
आसुतोष – सतत उपचार के बावजूद आकाश की स्थिति पूर्ववत है। मुझे नहीं लगता कि उन्हें पीड़ा से मुक्ति मिलेगी।”
न्यायाधीष – आप एक चिकित्सक होकर निराशावादी बातें कर रहें हैं।?”
आसुतोष – सत्यंता का संबंध निराशा से नहीं हैं।”
न्यायाधीष – अर्थात आकाश की स्थिति सुधर नहीं सकती। उन्हें पीड़ा युक्त जीवन जीना ही पड़ेगा?”
आसुतोष – हां, मेरे अनुभव का यही निष्कर्ष हैं।”
न्यायाधीष – (स्वयं से) याने आकाश को पीड़ा से मुक्ति दिलाने मुझे ही कुछ न कुछ उपाय करना होगा। (आसुतोष से) अच्छा डाक्टर, अब हम निकलते हैं।”
(न्यायाधीष, अमर और सुमन बाहर आते हैं। वे जीप में बैठते हैं।)
न्यायाधीष – (जीप चालक से) आप मुझे मेरे बंगने में छोड़ दें।”
चालक – यस सर।
(जीप सड़क पर दौड़ती हुई न्यायाधीष के बंगले के आगे रूकती हैं। न्यायाधीष नीचे आते हैं।)
न्यायाधीष – (अधिवक्ताओं से) आकाश के आवेदन पर कल निर्णय दिया जायेगा।”
अधिवक्ता – यस सर।
(जीप आगे बड़ जाती है। न्यायाधीष अपने बंगले में प्रवेश करते हैं।)
दृष्य परिवर्तन
(एक कमरे में अनेक व्यक्ति हैं। ये मानव सुरक्षा संघ (संक्षिप्त नाम-मासुस) के सदस्य हैं। जब भी कोई गंभीर समस्या पर विजार करना होता है तो ये एकत्रित होकर निदान के लिये रास्ता निकालते हैं।)
चन्द्रहास – (सदस्यों से) मित्रों, क्रांतिकारी चीता दल याने क्राचीद की कार्यप्रणाली किसी से छिपा नहीं। वह अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये हिंसा करता हैं। उनके हिंसात्मक कार्य का निशाना आकाश जैसे वैज्ञानिक बने। आकाश कितना दुखद जीवन व्यतीत करें- अंतत& उन्हें दयामृत्यु की अनुमति मांगने न्यायालय की शरण लेनी पड़ी। न्यायालय ने उनकी पीड़ा को अनुभव किया। और आकाश को दयामृत्यु की अनुमति दे दी।”
समीर – (चिंतित स्वर में) लेकिन अब क्या होगा! न्यायालय ने ऐसा निर्णय देकर उचित नहीं किया। सेफ्टीलाईफ के निर्माण का कार्य अधूरा है। आसाश की मृत्यु के बाद उसे कौन पूरा करेगा…।!”
चन्द्रहास – हां समीर। आपकी चिंता उचित है। सेफ्टीलाईफ मानवहित को ध्यान में रखकर बनाया जा रहा हैं। और उसकी पूर्णता के लिये आकाश का जीवित रहना आवश्यक है।”
समीर – इसका अर्थ हमें आकाश को जीवित रखने कोई न कोई रास्ता निकालका पड़ेगा।”
प्रताप – लेकिन न्यायालय ने दयामृत्यु का निर्णय दे दिया है। यहां तक कि डा। महादेवन को इसके लिये आदेश भी मिल चुका है।”
चन्द्रहास – समस्या गंभीर है।
दृष्य परिवर्तन
(डा। महादेवन तैयार होते हैं। वे दर्पण के सामने खड़े होते हैं। दर्पण में उनका प्रतिरूप उपस्थित होता है।)
प्रतिरूप – तो डा। साहब, आप आकाश को मृत्यु प्रदान करेंगे ही न?”
(डॉ. की खीझ बढ़ जाती है)
डा।महादेवन – हां, न्यायालय का मुझे आदेश मिला हैं। मैं आदेश का निरादर करके अपना भविष्य अंधकार में नहीं डाल सकता।”
प्रतिरूप – आप आकाश का उपचार करके स्वस्थ करने से तो रहे! हां, उन्हें मृत्यु प्रदान आसानी से कर सकते हैं। क्यों सही है। न डाक्टर!”
(डा। की खीझ बढ़ जाती है।)
डा।महादेवन – हां, मैं आकाश को मृत्यु प्रदान करूंगा। इसमें कोई अवरोध उत्पन्न नहीं कर सकता।”
प्रतिरूप – आप कर भी क्या सकते हैं।! आप डाक्टर का कर्म करके आकाश के प्राण बचाते। लेकिन आप तो जल्लाद बन गये हैं जल्लाद। और इसके अंतर्गत आकाश के प्राण हरेंगे ही।”
(डा। खीझ कर प्रतिरूप पर पत्थर दे मारते हैं। दर्पण टुकडों में बंट जाता है। उसमें डा। के कई प्रतिरूप उपस्थित होते हैं। वे सभी के सभी अटटहास करते हैं। डा। कमरे से बाहर हो जाते हैं। तभी एक बालक सौरभ उनके पास आता हैं।)
सौरभ – पापा, आप अस्पातल जा रहे है।”
(डा। महादेवन, सौरभ के सिर पर स्नेह का हाथ फेरते हैं। उनकी आंखों के सामने उस दिन का दृष्य उपस्थित हो गया- जब एक महिला अस्पताल में आयी। वह गर्भवती थी। उसने एक बालक को जन्म दिया और उसे छोड़कर भागगयी। प्रात& अस्पताल में शोर मच गया।)
नर्स – (डा। महादेवन से) डा। साहब, पलंग नं। आठ की महिला नवजात शिशु को छोड़कर भाग गयी।”
(डा। महादेवन पलंग के पास आये। बालक निद्रा में था। उसके मासूम चेहरे को देखकर डा। को प्यार आ गया। उन्होंने बालक को स्पर्श किया। बालक ने आंखे खोलकर उनकी ओर देखा)
नर्स – सर, यह बालक कितना सुंदर है! अब यह अनाथ हो जायेगा।”
डा।महादेवन – यह अनाथ नहीं होगा। इसका पालन पोषण मैं करूंगा।”
(डा। महादेवन बालक को उठा लेते हैं……। अब डा। पूर्व की यादों से बाहर आते हैं)
सौरभ – पापा, आप कहां खो गये थे। आप मुझे प्यार क्यों नहीं करते। आप तो सदैव दूसरों का उपचार करते हैं। उनके प्राण बचाते हैं।”
(डा। महादेवन स्नेह का हाथ फेरकर आगे बढ़ जाते है।)
अस्पताल का दृष्य
(डॉ. महादेवन अस्पताल में प्रवेश करते हैं। आकाश पलंग पर सोये हैं। उनके पास “मृत्यु मशीन’ रखी हैं। डा। महादेवन वहां प्रवेश करते हैं। आकाश उनकी ओर देखते हैं। डॉ.महादेवन को लगता है कि आकाश उनसे कह रहे हैं)
आवाज – आइये डॉ. साहब, आपका स्वागत है। आप उपचार करके मेरी पीड़ा खत्म नहीं कर सके तो मृत्यु प्रदान करने आ गये। आइये, मुझे मृत्यु स्वीकार है। आज से आप डाक्टर लोग यह तो नहीं कहेंगे कि हम दूसरे ईश्वर है। मरते हुए को प्राण देते हैं।”
डा।महादेवन – (आकाश की ओर कदम बढ़ाते हुए मन ही मन) आपको जीवन से मुक्ति दिलाने का आदेश न्यायालय ने दिया है। मैं उसके आदेश का पालन करुंगा ही।”
(डा। महादेवन आकाश के पास पहुंचते हैं। वे मृत्यु मशीन का बटन दबाने हाथ बढ़ाते हैं। मगर उनके हाथ कांपने लगते हैं)
डा।महादेवन – (स्वयं से) अरे, अनायास मेरे हाथ को क्या हो गया। वह मृत्यु मशीन के बटन को क्यो नहीं दबा सका। मेरा ह्रदय इतना अधिक क्यों धड़क रहा है। मेरी शक्ति पल पल क्षीण क्यों हो रही है।?”
(डा। महादेवन बटन पर उंगली रखते हैं। उनकी उंगली कांपने लगती हैं। माथे पर पसीना उभर आता है। आकाश, डाक्टर के हावभाव को देखते है।)
आकाश – (डॉ. को साहस देते हुए) डा। साहब, आप शीघ्र कीजिये। बटन दबाइये। मृत्यु मशीन आपको आमंत्रित कर रही है। आप पराजय मत मानिये। डा। साहब, आप शीघ्र कीजिये।”
(मगर डॉ.महादेवन बटन दबाने में असमर्थ हो जाते हैं। वे बटन से हाथ खींच लेते हैं)
आकाश – (कलरव करते हैं) आप हार क्यों मान रहे हैं। मुझे मृत्यु चाहिये। मुझे मृत्यु दीजिये।”
(डॉ. महादेवन बाहर निकल जाते हैं।)
आकाश – (जोर जोर से चीखते हैं।) डॉ. साहब, ये आपने क्या किया- रूक जाइये। मुझ पर दया कीजिये। मुझे मृत्यु प्रदान कीजिये……।”
(आकाश चीख चीखकर बेहोश हो जाते हैं।)
दृष्य परिवर्तन
(मासुस के सदस्य आपस में विचार विमर्श करने संलग्न हैं कि एक सदस्य मृणाल प्रवेश करती हैं। उनके चेहरे पर प्रसन्नता की आभा है)
चन्दहास – मृणाल, आप इतने प्रसन्न क्यों दिखायी दे रही हैं।?”
मृणाल – समाचार सुनेंगे तो आप भी प्रसन्नता से खिल जायेंगे।”
चन्द्रहास – यहां हम समस्याओं में उलझे हैं और आप प्रसन्नता की बात कर रही हैं।!”
मृणाल – डॉ. महादेवन अपने कार्य में असफल हो गये।”
सभी सदस्य – क्या, आप सच कह रही हैं?”
मृणाल – हां, वे मृत्यु मशीन का बटन नहीं दबा सके। वे निलम्बित कर दिये गये हैं। उनके बदले डॉ.सुरजीत को आदेशित किया गया है।”
समीर – इसका तात्पर्य हमें भरपूर समय मिल गया।”
मृणाल – हां समीर, पूरा पूरा समय मिला हैं। हमें अपना कार्य शीघ्र निपटाना होगा।”
चन्द्रहास – मगर कार्य का प्रतिपादन कैसे किया जाय-समझ नहीं आ रहा हैं?”
मृणाल – हम आकाश का अपहरण क्यों न कर लें?”
चन्द्रहास – मगर यह अपराध है। जबकि “मासुस’ अपराधिक कर्म को स्वीकार नहीं करता।”
मृणाल – हम आकाश का अपहरण फिरौती लेने थोड़े ही करेंगे। यह अपहरण अपराध नहीं कहलायेगा।”
प्रताप – मृणाल का कहना उचित है। एक उपाय मैं सुझाता हूं- आप आकाश का अपहरण कर लें। मैं उनके स्थान पर सो जाऊंगा। इससे डॉ. सुरजीत के कार्य में अवरोध उत्पन्न नहीं होगा। और आकाश जीवित भी बच जायेंगे।”
मृणाल – तात्पर्य, आकाश को बचाने आप को मृत्यु शैया पर सुला दें।”
प्रताप – नि&संदेह।
मृणाल – एक के प्राणरक्षार्थ। दूसरे को मृत्यु का ग्रास बनाने का प्रावधान “मासुस’ की संहिता में नहीं है”
प्रताप – मैं “मासुस’ के विचारों का आदर करता हूं। मेरी चेतना दिन प्रतिदिन लुप्त होती जा रही है। और वह दिन दूर नहीं जब मेरी चेतना पूर्णत& लुप्त हो जायेगी। मैं महत्वहीन हो जाऊंगा। मानवहित के लिये मेरा जीना उतना आवश्यक नहीं, जितना कि आकाश का।”
चन्द्रहास – (सभी सदस्यों से) क्यों मित्रों, क्या हम प्रताप के प्रस्ताव को स्वीकार लें?”
सभी सदस्य – प्रताप का विचार उचित है। हमें उनके विचार का स्वागत करना चाहिये।”
चन्द्रहास – तो इस कार्य में विलंब करना उचित नहीं।”
(मासुस के सदस्य आकास को उठा लेते हैं। उनके स्थान पर प्रताप सो जाते हैं)
(आकाश अचेतावस्था में हैं। मासुस के सदस्य उनके इर्द-गिर्द बैठे हैं। वे आकाश की चेतना लौटने की प्रतीक्षा में हैं। आकाश आंखे बंद किये ही बड़बड़ाते हैं)
आकाश – पानी पानी।
(चन्द्रहास ग्लास में पानी डालते हैं)
चन्द्रहास – (आकाश से) लीजिये पानी। मुंह खोलिये।”
(आकाश मुंह खोलते हैं। चन्द्रहास पानी डालते हैं। आकाश पानी को गुटकते हैं। प्यास बुझती हैं तो मना कर देते हैं। चन्द्रहास ग्लास रख देते हैं।
थोड़ी देर बाद आकाश आंखे खोलते हैं। सामने अपरिचितों को देखकर चौंक पड़ते हैं)
आकाश – (उठने का प्रयास करते हुए) आप लोग कौन हैं- मैं तो अस्पताल में था। मुझे यहां किसने लाया?”
चन्द्रहास – आप लेटे रहिये। हम गलत व्यक्ति नहीं हैं। हम “मासुस’ के सदस्य हैं।”
आकाश – मैंने इस संस्था का नाम सुना है। मगर आपने मुझे यहां क्यों लाया?”
चन्द्रहास – मृत्यु से मुक्ति दिलाने।
आकाश – आप लोग अनभिज्ञ नहीं होंगे- मैंने स्वयं मृत्यु चाहा था।”
चन्द्रहास – मगर हम आपको असमय मरने नहीं देना चाहते।”
आकाश – पीड़ित जीवन ने मेरे जीने की लालसा खत्म कर दी है।”
चन्द्रहास – अब हम आपकी पीड़ा को खत्म कर देंगे। और जीने की लालसा को बढ़ा देंगे।”
आकाश – असम्भव, बड़े बड़े डाक्टर असफल रहे तो आप लोगों को सफलता मिलना संभव नहीं।”
चन्द्रहास – हम अपने कर्माें पर विश्वास रखते है। अपनी विधि से उपचार करते हैं। और असंभव को संभव बनाने का प्रयास करते है। अंतत& जीत हमारी ही होती है।”
आकाश – मैं एक बार फिर कह रहा हूं- मेरी बात मानिये। मुझे मरने दीजिये।”
चन्द्रहास – नहीं…… न हम आपको मरने देंगे ओर न ही “सेफ्टी लाईफ’ के कार्य को अधर में लटकने देंगे।”
आकाश – (आश्चर्य से) अरे, सेफ्टी लाईफ के संबंध में आप जानकारी रखते हैं। लेकिन आपको किसने बताया?”
(उसी समय प्रोफेसर अनूप आते हैं)
अनूप – मैंने बताया
(अनूप को देखकर आकाश आश्चर्य में पड़ जाते हैं।)
आकाश – प्रोफेसर आप……।।”
अनूप – हां मित्र, मैं प्रोफेसर अनूप। मैंने अपना निश्चय तोड़ा- इसके लिये क्षमा प्रार्थी हूं।”
आकाश – क्या आवश्यकता थी- आपको वचन तोड़ने की?”
अनूप – यदि मैं वचन बद्ध रहता तो आपका जीवन, मृत्यु में परिवर्तित हो जाता।”
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आकाश – क्या आपको भी विश्वास है कि “मासुस’ मुझे स्वस्थ कर देगा?”
अनूप – नि&संदेह।
आकाश – यदि मासुस इसमें असफल रहा तो?”
अनूप – असफलता का कोई कारण नहीं है।”
मृणाल – तो आप अपने मित्र के विचारों से सहमत हो गये न आकाश?”
(आकाश स्वीकृति में सिर हिला देते हैं। मासुस अपनी विधि से आकाश का उपचार करना शुरू कर देता है।)
दृष्य परिवर्तन
(आकाश सोफे पर बैठे हैं। मृणाल उनके पास आती हैं। उनके हाथ में दवाई भरी सुई है।)
आकाश – मृणाल, अब सुई लगाने की क्या आवश्यकता है! मैं तो “मासुस’ के कारण पूर्ण स्वस्थ हो गया हूं?”
मृणाल – (आकाश की बांह में सुई लगाते हुए) अनावश्यक सुई तो लगाऊंगी नहीं। आपको इसकी आवश्यकता है। इसीलिये ही लगा रही हूं।”
(इसी समय चन्द्रहास, अनूप सहित अन्य सदस्य प्रवेश करते हैं। उनके चेहरे पर प्रसन्नता की छाप है)
चन्द्रहास – (मुस्करा कर आकाश से) क्यों आकाशजी, अब तो आप को हमारे कार्य पर विश्वास हुआ न?”
आकाश – हां, अब तो मुझे सुई से डर लगने लगा है।”
चन्द्रहास – आप तो बांह में लग रही सुई से भय खाने लगे है। फिर मृत्यु मशीन की सुई को कैसे सहन करेंगे- मृत्यु मशीन की सुई तो सीधा हृदय को बेधती है?”
आकाश – अब मृत्यु मशीन की आवश्यकता नहीं है।”
चन्द्रहास – इसका तात्पर्य अब आप मृत्यु से कतराने लगे?”
आकाश – जब जीने के लिये अवसर मिल गया है तो जी लिया जाय।”
(आकाश हंस पड़ते हैं। साथ ही “मासुस’ के सदस्य भी)
आकाश – मासुस की तरह क्राचीद भी एक संस्था है। उसके सदस्य प्रतिभावान हैं। विद्वान हैं। मगर दोनों की कार्यप्रणाली में अंतर है।”
मृणाल – क्राचीद की कार्यशैली हिंसात्मक है। हिंसा कभी हितकर कार्य नहीं कर सकता। हिंसक व्यक्ति समाज को हितैषी बनने के बदले शत्रु बन जाता है। और इसीलिये क्राचीद की कार्यप्रणाली का मासुस विरोध करता है। हिंसक कितना भी प्रतिभावान क्यों न हो मगर उसे लुक छिपकर रहना पड़ता है। इसलिये वह अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने में असफल रहता है। हम तो “क्राचीद’ से भी अपेक्षा करते हैं। कि वह हिंसा का त्याग करे। समाज के हित में कार्य करे।”
(आकाश, मृणाल के विचारों से प्रभावित होते हैं।)
आकाश – वास्तव में मासुस के विचार प्रशंसनीय हैं।”
मृणाल – और कार्य प्रणाली?’
आकाश – अनुकरणीय है। मैं मासुस के कार्य और विचारों का आदर करता हूं। अब देखना- सेफ्टी लाईफ को मैं पूर्ण तैयार करके दिखाऊंगा।”
(सभी सदस्य एक साथ तालियां बजाते हैं)
दृष्य परिवर्तन
(डा। महादेवन का निवास। वे चिंतामग्न बैठे हैं कि घंटी बजती है)
(वे दरवाजे की ओर बढ़ते हैं। कि घटी पुन& बजती है।)
डॉ.महादेवन – (ऊंची आवाज से) मैंने घंटी की आवाज सुन ली। मैं मरा नहीं। अभी जीवित हूं।”
(वे दरवाजा खोलते हैं। सामने प्रोफेसर खड़े मुस्करा रहे है, डॉ. हड़बड़ा जाते है।)
डॉ.महादेवन – प्रोफेसर साहब, आप…………।
प्रोफेसर – हां, क्या अंदर आने नहीं कहेंगे!
डॉ.महादेवन – क्यों नहीं। आइये न।
(दोनों भीतर प्रवेश करते हैं। वे सोफे पर बैठते हैं।)
प्रोफेसर – आप बहुत खीझे हुए दिखाई दे रहे है!
डॉ.महादेवन – हां प्रोफेसर, आपको क्या मालूम- किसी की जीविका छिन जाती है तो उसकी क्या स्थिति होती है।
प्रोफेसर – मैं आपकी पीड़ा समझ रहा हूं डॉ.”
महादेवन – बस इतना सांत्वना तो सभी देते हैं।”
प्रोफेसर – मैं आपको सांत्वना देने नहीं आया। मैं आपको जीविका दिलाने आया हूं।”
महादेवन – आखिर आप कहना क्या चाहते हैं?”
प्रोफेसर – न्यायालय ने आपको आकाश को दयामृत्यु देने नियुक्त किया था। उसमें आप असफल हो गये। इसे कर्यव्यहीनता माना गया। और आप निलम्बित कर दिये गये।”
महादेवन – हां
प्रोफेसर – डॉ. सुरजीत ने अपना कार्य पूर्ण किया। इसके लिये वे पदोन्नत हुए।”
महादेवन – हां
प्रोफेसर – मगर यथार्थ में डॉ. सुरजीत ने भी अपना कार्य नहीं किया।”
महादेवन – (आश्चर्य से) आखिर आप कहना क्या चाहते हैं। मुझे साफ साफ तो बताइये!”
प्रोफेसर – दरअसल डॉ. सुरजीत ने जिस व्यक्ति को दयामृत्यु दी वे आकाश नहीं अपितु प्रताप थे। और वे मासुस के सदस्य थे।”
महादेवन – इसका तात्पर्य आकाश जीवित हैं। और जीवित हैं तो आप उनके रहने के स्थान को जानते होंगे?”
प्रोफेसर – हां अवश्य।
महादेवन – तो प्रोफेसर, मुझे आकाश ही न्याय दिलवा सकते हैं। मुझे उनके पास ले चलिये।”
प्रोफेसर – मैं आपको ले जाने ही आया हूं।
महादेवन – फिर देर क्यों कर रहे है। शीघ्र कीजिये।”
(दोनों जीप में बैठते हैं। जीप सड़क पर दौड़ता है)
प्रोफेसर – आकाश ने सेफ्टीलाईफ नामक यंत्र का आविष्कार किया है। वह मानव जीवन के लिये रक्षा कवच है।”
डॉ.महादेवन – अच्छा।
प्रोफेसर – हां (चालक से) दाहिना मोड़िये। वो पीला बिल्ड़िग है न वहीं जीप रोकना।”
चालक – जी हां।
(जीप दाहिना मुड़कर बिल्ड़िग के सामने रूक जाता है। दोनों जीप से नीचे आते हैं। बिल्ड़िग की ओर कदम बढ़ाते हैं।)
प्रोफेसर – इस यंत्र की खूबी है कि यह बमों को निष्क्रिय करने में पूरी तरह समर्थ है।”
डॉ.महादेवन – अच्छा।
प्रोफेसर – हां (एक कक्ष में प्रवेश करते हुए) आइये।
(दोनों भीतर प्रवेश करते है। सामने आकाश को पाकर डॉ.महादेवन के पांव ठिठक जाते है। वे चकित होकर आकाश को देखते हैं।)
आकाश – ठिठक क्यों गये डाक्टर। आइये। बैठिये।”
(डॉ. महादेवन सोफे पर बैठ जाते हैं)
आकाश – डॉ. साहब, मै आपका आभारी हूं (सेफ्टीलाईफ को दिखाते हुए) मैं आपके ही कारण इस यंत्र का आविष्कार कर सका।”
डॉ.महादेवन – मगर इसके बदले मुझे क्या मिला-मेरा वर्तमान और भविष्य गर्त में चला गया न!”
आकाश – मैंने इस गर्त से उबारने ही आपको बुलाया है।”
डॉ.महादेवन – आपका तात्पर्य?
आकाश – मैं न्यायलय में इस सेफ्टीलाईफ को दिखाऊंगा। और आपको न्याय दिलाऊंगा। आप मेरे साथ न्यायालय चलिये।”
(डॉ.महादेवन और आकाश जीप में बैठते हैं। जीप सड़क पर दौड़ता है)
दृष्य परिवर्तन
(क्राचीद का अडडा। ऋषभ कमर में बेल्टबम बांधता है। वह निकलने लगता है कि विश्वास कहता है)
विश्वास – ऋषभ, आप कहां चले?”
ऋषभ – मैं न्यायालय का सर्वनाश करने जा रहा हूं। आज बेल्टबम का प्रयोग वहीं करूंगा।”
विश्वास – आप विद्वान हैं। प्रतिभावान लेखक हैं। फिर भी आप सर्वनाश करना चाहते हैं।”
ऋषभ – हां, मेरी विद्वता मेरी प्रतिभा की पहिचान आपको है। मगर कानूनविदों को नहीं (अंतिम क्रांति-नामक पुस्तक की ओर संकेत करते हुए) आप तो जानते हैं- मैंने इस “अंतिम क्रांति’ पर दयामृत्यु के संबंध में लिखा है। मगर इसे किसी ने नहीं सराहा। उल्टा अवहेलित की।”
विश्वास – आपकी पुस्तक और आपके विचारों का निरादर हुआ इसका तात्पर्य यह तो नहीं कि आप न्यायलय को ही उड़ा दें। आप अपराधिक कर्म पर अंकुश लगाइये।”
ऋषभ – हूंह। यही भाषण मैंने प्रणव को पिलाया था। उसने कहा था- न्यायलय को उड़ा दो। तब मैंने धैर्य पर बल दिया था। सोचा था- देर सबेर मेरी प्रतिभा का मूल्यांकन होगा। मगर संवाद हीनता आड़े आयी। अब तो मेरे पास एक ही रास्ता है- न्यायालय का सर्वनाश करना।”
(ऋषभ झटके के साथ आगे बढ़ जाता है)
दृष्य परिवर्तन
(न्यायालय – यहां अधिवक्ता। पक्षकार साक्षी और अन्य लोगों की भीड़ है। आकाश, डॉ.महादेवन के साथ न्यायालय में प्रवेश करते हैं। इसी क्षण सेफ्टीलाईफ की लालबती जलने लगती है। आकाश के कदम रूक जाते हैं)
डॉ.महादेवन – आकाश जी, आप रूक क्यों गये?”
आकाश – सेफ्टीलाईफ संकेत दे रहा है कि यहां कोई खतरा है।”
डॉ.महादेवन – खतरा लेकिन कैसा खतरा?
(डॉ.महादेवन सिहर उठते है। वे भयभीत दृष्टी से इधर-उधर देखते हैं। सेफ्टीलाईफ की पीलीबती जल उठती है)
आकाश – यहां कोई बेल्टबम पहनकर आया है। वह न्यायालय को तबाह करना चाहता है।”
(आकाश एक बटन को दबाते हैं। वे एक व्यक्ति की ओर संकेत करते हैं। वह ऋषभ है। आकाश सेफ्टीलाईफ का दूसरा बटन दबाते हैं।) अब देखना-ऋषभ का बेल्टबम निष्क्रिय हो जायेगा।”
महादेवन – क्या सच?
आकाश – हां
(ऋषभ बेल्टबम का बटन दबाता है। मगर सेफ्टीलाईफ के कारण वह निष्क्रिय हो जाता है। ऋषभ बेल्टबम के बटन को पुन& जोर जोर सो दबाता है, मगर वह नहीं फटता। ऋषभ परेशान और गुस्से से भर जाता है। अचानक उसकी दृष्टि आकाश पर जाती है। आकाश मुस्करा रहे हैं। ऋषभ को क्रोध पार कर जाता है। वह किटकिटाकर आकाश की ओर दौड़ता है। आकाश चिल्ला उठते हैं)
आकाश – इसे पकड़ो। इसके पास बेल्टबम है।”
(न्ययालय में भगदड़ मच जाती है। ऋषभ प्राणबचाकर भागने का प्रयास करता है। मगर तब तक वहां की पुलिस उसे दबोच लेती है। उसे न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। आकाश को सामने पाकर न्यायाधीष नागार्जुन आश्चर्य मे पड़ जाते हैं)
न्यायाधीष – आप।
आकाश – हां मैं आकाश।
न्यायाधीष – मगर आपको तो?
आकाश – मुझे दयामृत्यु दे दी गयी थी……। आप यही कहना चाहते हैं न! मगर “मासुस’ ने मुझे मरने नहीं दिया।”
(सेफ्टलाईफ न्यायाधीष को सौंपते हुए) जिसका उपलब्धि यह है।”
न्यायाधीष – यह क्या है?
आकाश – यह सेफ्टीलाईफ है। इसके कारण ही बेल्टबम निष्क्रिय हो गया। अपराधी पकड़ा गया। न्यायालय बर्बाद होने से बच गया।”
(उसी समय ऋषभ अपनी “अंतिम क्रांति’ पुस्तक को न्यायाधीष को सौंपते है)
ऋषभ – (न्यायाधीष से) सर, इसमें अनेक गंभीर विषयों पर वैचारिक लेख लिखे गये हैं। इसमें “दयामृत्यु’ पर भी चर्चा की गई है- कि किस व्यक्ति को किस परिस्थिति में दयामृत्यु का अधिकार दिया जाय।”
न्यायाधीष – अच्छा।
ऋषभ – हां सर, (थोड़ा रूक कर) सर, मैं एक प्रश्न करना चाहता हूं?”
न्यायाधीष – कहो।
ऋषभ – सदा से एक नियम चला आ रहा है- मेरी तरह अपराधी पकड़ा जाता है। उस पर न्यायालयीन कार्यवाही होती है। और उसे दण्ड दिया जाता है। क्या यह प्रथा चलती ही रहेगी?”
न्यायाधीष – नहीं, वर्तमान में विश्व की न्यायपालिकायें अनिश्चय की स्थिति में हैं। कि दयामृत्यु को मान्यता दी जाये या नहीं! इस पर तुम्हारा लेखन है। सेफ्टीलाईफ ने अपनी प्रतिभा का प्रमाण प्रस्तुत कर दिया। अब उसकी योग्यता को कौन अस्वीकार सकता है! (अंतिम क्रांतिपुस्तक की ओर संकेत करते हुए) वैसे ही यदि यह पुस्तक अपने उद्देश्य में सफल रही तो इसका सम्मान होकर रहेगा।”