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08:41, 30 जनवरी 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा
|संग्रह=कविता के विरुद्ध / योगेंद्र कृष्णा
}}
<poem>
बंट रहे थे जब सारे पहर
बंट रही थीं जब
रोमांचक रातें
शबनम में नहायी
खुशनुमा सहर
मेरे हिस्से आई
बस गर्मियों की लंबी
चिलचिलाती दोपहर...