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04:36, 20 अप्रैल 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=सीता-वनवास / गुलाब खंडेलवाल
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[[Category:गीत]]
<poem>
सीते ! लौट अवध में आओ
बीते जीवन की दुःख-गाथा मन से दूर हटाओ
मातायें सब हैं दुखियारी
बहुओं को पल-पल है भरी
आये लज्जित पुर नर नारी इनकी ग्लानि मिटाओ
देख तुम्हें वन में यूँ रहते
किसके दृग से अश्रू न बहते!
सभी एक स्वर से हैं कहते--'सीता को घर लाओ '
'ली जो राजधर्म की दीक्षा
मैं उसकी दे चुका परीक्षा
प्रिये! बहुत कर चुकी प्रतीक्षा और न अब दुःख पाओ'
सीते ! लौट अवध में आओ
बीते जीवन की दुःख-गाथा मन से दूर हटाओ
<poem>