भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
''सीते! लौट अवध में आओ / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
सीते ! लौट अवध में आओ
बीते जीवन की दुःख-गाथा मन से दूर हटाओ
मातायें सब हैं दुखियारी
बहुओं को पल-पल है भरी
आये लज्जित पुर नर नारी इनकी ग्लानि मिटाओ
देख तुम्हें वन में यूँ रहते
किसके दृग से अश्रू न बहते!
सभी एक स्वर से हैं कहते--'सीता को घर लाओ '
'ली जो राजधर्म की दीक्षा
मैं उसकी दे चुका परीक्षा
प्रिये! बहुत कर चुकी प्रतीक्षा और न अब दुःख पाओ'
सीते ! लौट अवध में आओ
बीते जीवन की दुःख-गाथा मन से दूर हटाओ