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''सीते! लौट अवध में आओ / गुलाब खंडेलवाल

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सीते ! लौट अवध में आओ
बीते जीवन की दुःख-गाथा मन से दूर हटाओ

मातायें सब हैं दुखियारी
बहुओं को पल-पल है भरी
आये लज्जित पुर नर नारी इनकी ग्लानि मिटाओ

देख तुम्हें वन में यूँ रहते
किसके दृग से अश्रू न बहते!
सभी एक स्वर से हैं कहते--'सीता को घर लाओ '

'ली जो राजधर्म की दीक्षा
मैं उसकी दे चुका परीक्षा
प्रिये! बहुत कर चुकी प्रतीक्षा और न अब दुःख पाओ'

सीते ! लौट अवध में आओ
बीते जीवन की दुःख-गाथा मन से दूर हटाओ

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