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16:43, 12 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>
इक के रह्यो है
बीं रै कन्नैं
पग रै मूंठै सूं
धरती कुच‘र
लखोणैं खातर
इब तो
जाणैं पाछो फिरै
काळ रो
ओ चक्को
अर जा‘र ठैरै
त्रेता जुग रै आंगणैं
आ धरती
फाटै ओजूं...
रूखाळा ही
फेरूं
लूट लीनी लाज
बाग रै
फूल री आज..।
</poem>
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