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थाणै में / सुरेन्द्र डी सोनी
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					इक के रह्यो है
बीं रै कन्नैं 
पग रै मूंठै सूं 
धरती कुच‘र
लखोणैं खातर
इब तो 
जाणैं पाछो फिरै 
काळ रो 
ओ चक्को 
अर जा‘र ठैरै 
त्रेता जुग रै आंगणैं
आ धरती
फाटै ओजूं...
रूखाळा ही 
फेरूं
लूट लीनी लाज
बाग रै 
फूल री आज..।
 
	
	

