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16:57, 12 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर'
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
डगमग करती तिरै
कागद री नावां
स्यांत पाणी मांय
हवळै-हवळै।
सनमन अर हेत
बगै मधरा-मधरा
फगत रंग्या-पुत्या
चै‘रां माथै
हियै बायरा।
लै‘रां री फटकार सूं
आंतरै
समदर जैड़ी ऊंडाई सूं
आंतरै।
कद आयज्या
बायरै रौ फटकारौ
कद आयज्या भूचाळ
खिंडज्या-डूबज्या नावां
उड़ज्या-धुपज्या रंग।
</poem>
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