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16:57, 12 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर'
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
थांरै होठां रौ परस
म्हारै गालां
अर लिलाड़ माथै
अलेखूं बर हुयौ।
वीं परस सूं
सांचरी सगति
थूं बणा दीन्हौ
म्हंनै बचियै सूं
सांतरौ मिनख
ठा‘ ई नीं लाग्यौ।
अबै ई मिळै नित रा
मीठा परस
होठां सूं होठां
अर गाल माथै।
जांणै गिणती रा
लागै ठापा टिगस माथै
अर कर लेवै इधकार
लिफाफै माथै।
जदई जलमै हूंस
हुय ज्याऊं मुगत
फेरूं लेऊं जलम
अर तिरूं गंगा जैड़ै
थांरै आंचळ हेठै।
</poem>
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