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दिवलो : दो / रचना शेखावत

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|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
घर री
मंडेरयां माथै रा दिवला
मांदा पड़ जावै
जद देखै
पाड़ोसी रै घरां लटकती
लाईटां री लड़्यां डोळयां माथै
आवै आथूणी पूर रो झोलो
निंद जावै आंख्यां मंडेरी सूं
चिलकता माटी रा दिवलां री 
</poem>
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