709 bytes added,
16:27, 18 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
गर्दन दुखने लगती है
आकाश को निहारते ... मगर
नहीं टूटते तारे अब
कोई और जतन बताओ
कि एक आखिरी मुराद माँगनी है मुझे
टूटने वाली चीजें भी
कुछ न कुछ दे ही जाती हैं
मसलन
एक सबक !
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader